कोरोना के पश्चात ‘पढ़ने और पढ़ाने की बदलती रूपावली’ विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

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Faridabad News, 08 July 2021 : डी.ए.वी. शताब्दी महाविद्यालय, फरीदाबाद में ऐनेट व् लिटरेरी वॉयस के सहयोग से कोरोना महामारी के पश्चात पढ़ने और पढ़ाने की बदलती रूपावली -विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन चल रहा है। संगोष्ठी का आगाज गायत्री मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। संगोष्ठी के प्रथम दिवस पर संगोष्ठी की रूपरेखा व् उद्देश्य की जानकारी अंग्रेजी विभाग में कार्यरत सहायक प्रोफेसर शिवम् झाम्ब ने रखी। सहायक प्रोफेसर मैडम अंकिता मोहिंद्रा ने देश-विदेश से शामिल हुए सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया। महाविद्यालय प्रधानाचार्या डॉ. सविता भगत ने कहा कि कोरोना से पहले बेशक हम सभी शिक्षा व जिंदगी को हल्के में लेते थे परन्तु कोरोना काल में हुई शिक्षा की हानि ने हमें परंपरागत शिक्षा के मूल्यों को समझा दिया है।

ऐनेट के प्रोफेसर अमोल पडवाड ने संगोष्ठी के आयोजन विषय वस्तु को प्रतिभागियों के सामने रखा। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कोरोना से पहले व् कोरोना के बाद उत्पन्न हुए इस नए शिक्षा जगत पर बात करने, दोनों के मध्य अवलोकन व् एक दूरगामी ठोस नतीजे पर जल्द आने की वकालत की। संगोष्ठी की मुख्य वक्ता व् लिटरेरी वॉयस में एसोसिएट एडिटर के तौर पर कार्यरत डॉ. चारु शर्मा ने बताया की कोरोना की वजह से आज हम ई-फेसिंग शिक्षण कर रहे हैं जिसकी वजह से परंपरागत शिक्षा पद्धति ख़त्म होने के कगार पर है। एम. डी. यू. के कुलपति प्रो. राजबीर सिंह ने हमें ज्यादा फोकस अपने चुनौतियों को अवसरों में बदलने पर केंद्रित करना होगा। विशिष्ट अतिथि के रूप में संगोष्ठी से जुड़े, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में कार्यरत प्रो. निरंजन ने इस बात पर विशेष जोर दिया की कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा की उपलब्धियों के साथ-साथ इसकी खामियों और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले खतरनाक प्रभावों पर भी शोध किया जाना जरूरी है।

डी.ए.वी. प्रबंधन संस्थान से जुड़े श्री डी. वी. सेठी ने कहा कि परंपरागत शिक्षा पद्धति जिसमें शिक्षक और छात्र एक-दूसरे से मुखातिब होते हैं उसका स्थान किसी भी तरह की आधुनिक डिजिटल शिक्षा नहीं ले सकती। डिजिटल माध्यम से बेशक हम छात्रों को शिक्षित कर भी दें परन्तु उनके अंदर नैतिक मूल्यों का रोपन नहीं कर सकते। एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए लोगों का शिक्षित होना ही जरूरी नहीं है बल्कि उनके अंदर सामाजिक व् नैतिक मूल्यों की झलक भी जरूरी है।

संगोष्ठी के प्रथम दिवस पर देश-विदेश के पैंतालिस प्रतिभागियों ने कोरोना काल के दौरान ऑनलाइन माधयम से दी गई शिक्षा के दौरान हुए अपने अनुभवों, डिजिटल पाठन सामग्री का प्रबंधन, उपयोगिता व् सामने आई कठिनाइयों को लेकर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। आने वाले समय में किस तरह की शिक्षा होनी चाहिए, इस विषय वस्तु पर अपने विचार रखने के लिए शोध के दौरान जुटाए गए सांख्यिकी आंकड़ों के आधार पर अपनी बात को पुख्ता करने की कोशिश की।

अंत में मैडम अंकिता मोहिंद्रा ने सभी वक्ताओं व् प्रतिभागियों को इस संगोष्ठी का हिस्सा बनने पर उनका आभार व्यक्त किया। इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन महाविद्यालय की प्रधानाचार्या एवं संगोष्ठी संरक्षक डॉ. सविता भगत के प्रेरक दिशा निर्देशन में किया जा रहा है। देश- विदेश के दो सौ सत्तर प्रतिभागियों ने ज़ूम प्लेटफॉर्म के माध्यम से इस संगोष्ठी में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।

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