ऐसी कौन सी युक्ति है जिससे तनाव से मुक्ति पाई जा सकती है : आशुतोष महाराज

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New Delhi, 07 Oct 2020 : तनाव ने इस हद तक सारे समाज कोअपनी गिरफ्त में ले लिया है कि आज इंसान जीवन खत्मकरने के तरीकों को जानने के लिए उत्सुक है।आजकल ‘स्ट्रेस मैनेजमेंट’ यानी तनाव से कैसे छुटकारा पाया जाए- इस विषय पर अनेकों वर्कशॉप, सेमिनार व व्याख्यान भी आयोजित किए जा रहे हैं। इनमें तनाव-मुक्त होने के लिए बहुत सी टिप्स सुझाई जा रही हैं। परन्तु विडम्बना यह है कि इन सबके बावजूद तनाव का ग्राफ तेज़ गति से आसमान छूता चला जा रहा है। हालात ऐसे हो गए हैं कि आज हर व्यक्ति तनाव के किसी न किसी लक्षण से जूझ रहा है।

तनाव की बढ़ती समस्या को देखते हुए हमने एक शोध किया। एक ऑनलाइन पोर्टल के ज़रिए भिन्न-भिन्न वर्गों, प्रांतों एवं आयु के लोगों से इस विषय पर वार्त्तालाप की। पूरी प्रक्रिया से तनाव के कुछ मुख्य कारण उभर कर हमारे सामने आए। हम उन कारणों के समाधान इस लेख में दे रहे हैं। इन समाधानों में आप एक फर्क देख पाएँगे। वह यह कि येसमाधान व्यावहारिक फलसफे,दार्शनिक विचार या कुछआसन-प्राणायाम तक सीमित नहीं हैं। ये अध्यात्म आधारित हैं। कारण कि अध्यात्म ही है,जिसने आज तक इस संदर्भ में पूर्णतया सफल उदाहरण रखे हैं। जैसे कि- हिम्मत हार चुके अर्जुन ने युद्धभूमि में गांडीव उठा लिया! निराश और उद्विग्न भर्तृहरि वैराग्य एवं संयम के मार्ग पर बढ़ पाए! पिता के देहान्त के बाद, विषम परिस्थितियों से घिरे होने पर भी नरेन्द्र ने स्वामी विवेकानंद तक का सफर तय कर लिया! सम्पूर्ण राज्य का कार्यभार संभालते हुए भी राजा जनक कभी तनाव में नहीं आए! इन सब उदाहरणों में तनाव सेमुक्ति पाने का एकमात्र सशक्त माध्यम बना- अध्यात्म!कैसे? आइए जानते हैं…

तनाव का पहला कारण
क्या आपको आसपास के लोगों की बातें, उनकी प्रतिक्रियाएँविचलित करती हैं? क्या इन सबसे अंततः आप तनावग्रस्तमहसूस करते हैं? इस संदर्भ में हमें लोगों के अलग-अलग विचार मिले।लगभग सभी ने इस समस्या से खुद को जूझता हुआ बताया।उनमें से कुछ का कहना था कि ऐसी परिस्थिति में उनमें क्रोध उत्पन्न होता है। कई बार वे उसे अंदर ही अंदर पीजाते हैं, तो कई बार ज़ाहिर कर देते हैं। लेकिन दोनों हीप्रतिक्रियाएँ उन्हें परेशान कर देती हैं। मन अशांत हो जाताहै। वहीं कुछ लोगों का कहना था कि ऐसे माहौल में उनमें नकारात्मक भाव जन्म ले लेते हैं। यह नकारात्मकता धीरे-धीरे उन पर हावी होती चली जाती है और उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन घोल देती है। अंततः ये भी तनाव के दलदल में खुद को कैद पाते हैं।

यदि आपके साथ भी कुछ-कुछ ऐसी समस्या है, तो चलिए जानते हैं कि अध्यात्म हमें इस संदर्भ में क्या समाधान देताहै। सबसे पहले तो, ऐसी परिस्थितियों एवं व्यक्तियों से जो आपको परेशान-विचलित करते हैं, मन में खटास, उद्विग्नताएवं नकारात्मकता पैदा करते हैं-उनसे दूरी बना लें… यदि ऐसा करना संभव हो। क्योंकि ऐसे वातावरण में आपकी नचाहते हुए भी हानि होती है। ठीक वैसे ही जैसे धूम्रपान करनेवालों के इर्द-गिर्द रहने वाले व्यक्तियों पर बुरा प्रभाव पड़ताहै। इसीलिए ऐसे लोगों को ‘टॉक्सिक’मनुष्यों की श्रेणी मेंगिना जाता है।

परन्तु यदि स्वयं को ऐसे वातावरण से अलग कर पानासंभव न हो,तो?नकारात्मकता व क्रोध, जो तनाव के मुख्य कारणहैं,उनसे बचने का एक ही उपाय है- ‘परिष्कृत दृष्टिकोण’ यानी ऐसा नज़रिया, जिससे आप समस्त नकारात्मकता को तिलांजलि दे सकें।अब यहाँ प्रश्न उठता है- ऐसी कौन सी युक्ति है जिससेयह कर पाना वास्तव में संभव हो?इस संदर्भ में वेदों मेंएक सूत्र लिखा है- ‘चाक्षुष्मती विद्या ’अर्थात् ऐसी विद्या जिससे हम विवेक युक्त चक्षु प्राप्त कर सकें। वैदिक ऋषिहमारा मार्गदर्शन करते हुए यह प्रार्थना रखते हैं- ‘हे भगवान सूर्य! आप मेरे चक्षु में तेज रूप में स्थिर हो जाएँ।’ कहने काभाव कि आप हमारे दृष्टिकोण में वह विवेक भर दें, जिससे हम प्रत्येक परिस्थिति में सही व्यवहार, आचरण व कर्म करसकें। अध्यात्म अर्थात्‌ आत्मा की जागृति हमें यही विवेकदृष्टि प्रदान करती है। ठीक जैसे श्रीकृष्ण ने तनाव ग्रस्त अर्जुनको प्रदान की थी! अतः अध्यात्म का यह सूत्र तनाव ग्रस्त परिस्थितियों से निपटने का कारगर तरीका है।आध्यात्मिक जागृति के बाद,आपके भीतर भी न केवल सकारात्मक एवं विवेकपूर्ण विचार एकजुट होने लगते हैं; अपितु आपमें ऐसी आंतरिक ऊर्जा व साहसभी उत्पन्न होता है जिससे आप तनाव ग्रस्त परिस्थितियों के सामने घुटने नहीं टेकते। बल्कि उन नकारात्मक पहलुओं को समझदारी से खत्म करने की क्षमता रखते हैं।

तनाव का दूसरा कारण
परिवार चलाने के लिए धन कमाना… धन कमाने के लिए काम पर जाना… काम के बेतहाशा बोझ के तले दबे रहना…परिवार के लिए समय न निकाल पाना… क्या आप इस चक्र में फंसे होने के कारण हर समय तनाव ग्रस्त रहते हैं? अधिकतर लोगों ने इस प्रश्न का उत्तर ‘हाँ’ में दिया। शायद यह पढ़कर आपके अंदर से भी यही आवाज़ निकली होगी-‘हाँ,हू-ब-हू ऐसा ही है।’तो आइए, इस संबंध में भी कुछ महत्त्वपूर्ण बातें जानने और समझने का प्रयास करते हैं।

1970 के दशक में ऑक्सफोर्ड शब्दकोश में एक शब्द जोड़ दिया गया- एफ्लुऐंज़ा। आपने इन्फ्लुऐंज़ा सुना होगा, जो कि एक बीमारी होती है। एफ्लुऐंज़ाभी एक प्रकार का रोग ही है। एफ्लुऐंज़ा मतलब धन,वस्तुएँ,ऐश्वर्य इत्यादि जमा करने का पागलपन! यह पागलपन हमें देता है- दुःख, तनाव, अशांति! अरब पति मार्क क्यूबन का कहना है- ‘पैसा चाहे दोनों हाथों से भर-भर कर जमा कर लो;पर यह आशा मत रखना कि इससे आप खुशी पा लेंगे। पैसे ने न कभी यहदिया है,न ही देगा!’ इसके प्रमाण एक नहीं, अनेकानेक हैं। इसलिए एफ्लुऐंज़ा का शिकार न हों। धन,वस्तुएँ,ऐश्वर्य इत्यादि जमा करने का पागलपन न करें! दूसरा, उनसे इतना लगाव न करें कि उनके न मिल पाने पर या छिन जाने परआप अपना मानसिक संतुलन खो बैठें। तनावग्रस्त हो जाएँ।

इस विषय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ‘समत्व योग’ सेपरिचित कराया-सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ… (२/३८)यानी इच्छित लक्ष्य को पाने में जय हो या पराजय,लाभ याअलाभ,सुख हो या दुख… तू सम रह।आधुनिक भाषा में कहें,तो यह समत्व योग हमें WOW (WithOrWithout) का गुण प्रदान करता है। यानी इच्छितवस्तु/ऐश्वर्य मिले अथवा न मिले- दोनों ही परिस्थितियों मेंसमता का परिचय देना।

गीता जहाँ हमें इच्छित परिणाम मिलने या न मिलने परसम अवस्था में रहना सिखाती है;वहीं काम और विश्राम में भी संतुलन बिठाने की शिक्षा प्रदान करती है। इस फलसफे को अपनाकर भी व्यक्ति तनाव मुक्त हो सकता है। यदि हम बिना विश्राम किए काम करते हैं, तो यह तनाव उत्पन्न करसकता है। पर आजकल तो सामान्यजीवन स्तर के लिए भीहमें लगातार कई-कई घंटों तक काम करना पड़ता है। ऐसेमें वर्क-लाइफबैलेन्स (संतुलन) की बातें काल्पनिक लगती हैं। परन्तु अध्यात्म इसे प्रैक्टिकल बनाने की क्षमता रखताहै। कारण कि आत्म जागृति के माध्यम से हम अपने भीतर अथाह ऊर्जा का संचार कर पाते हैं। फिर कम विश्राम करके भी हम भरपूर स्फूर्ति एवं सुचारु ढंग से कार्य कर सकते हैं। अतः इन सब पहलुओं को देखते हुए,यह बात प्रमाणित हो जाती है- ‘आज के तनाव युक्त समाज को यदि तनाव मुक्त बनाना है, तो हमें अध्यात्म को अपनाना होगा।’

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