गलत फहमियों को दूर करना चाहता हूं: मनोज कुमार मांडी

0
982
Spread the love
Spread the love

“मुज़फ्फरनगर-दी बर्निंग लव” 17 नवंबर 2017 में प्रदर्शित हो रही है

New Delhi News : लगभग डेढ़ वर्ष के अथक परिश्रम के पश्चात साल 2013 के दंगों पर आधारित फिल्म मुजफ्फरनगर द बर्निंग लव सेंसर होकर 17 नवंबर 2017 में प्रदर्शन के लिये तैयार है। पेशे से बिजनसमैन मनोज कुमार के जेहन में मुजफ्फरनगर में हुए दंगे के बाद लोगों के बीच फैले मनमुटाव को फिर से आपसी प्यार में बदलने के लिये फिल्म बनाने का फैसला किया। दिलचस्प बात यह है कि फिल्म के निर्माता ही लेखक भी हैं। उन्होंने किरदारों का चुनाव भी बड़े सटीक ढंग से किया है, फिल्म के किरदार कुछ इस प्रकार हैं जिनमें देेव शर्मा, एश्वर्य दिवान, एकांष भारद्वाज, अनिल जार्ज, मुस्र्लीन कुरैशी जैसे कलाकार शामिल हैं।

फ़िल्म के निर्देशक हरीश कुमार ने बताया कि यह फ़िल्म 2013 को मुज़फ्फरनगर में घटित एक दुर्घटना पर आधारित होते है, यह हिंसक घटनाओ के बीच में दो दिलों के प्यार की भावनात्मक कहानी है, जो 2013 के दंगे पर आधारित होते हुए भी दर्शकों को एक महत्वपूर्ण संदेश देती है,

फिल्म का निर्माण मोरना एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले हुआ है। जबकि फिल्म में संगीत मनोज नयन, राहुल भट्ट और फराज अहमद का है। आपको मुजफ्फरनगर दंगा 2013 पर फिल्म बनाने का ख्याल कैसे आया? मैं बिजनसमैन हूं, व्यापार के सिलसिले में अलग अलग प्रदेशों में जाता रहता हूं। मैने देखा कि लोगों में इस दंगे के बाद अलग-अलग भावनाएं देखने को मिल रही हैं। अगर कोई मुस्लिम है तो वह यह सोच रहा है कि वहां पर हमारे लोगों के साथ बुरा बर्ताव हुआ और यदि हिंदु है तो वह भी यही सोच रहा है। बस इसी को ध्यान में रखते हुए मैने सोचा कि क्यों न इस पर एक फिल्म बनाई जाए। लोगों में जो गलतफहमियां फैली हुई हैं उन्हें दूर किया जाये। क्योंकि आपसी मनमुटाव देश के लिये हानिकारक हो सकता है उसे कैसे दूर किया जाये। फिर मुझे लगा कि फिल्म के माध्यम से यह काम किया जा सकता है।

इस फिल्म को बनाने का मुख्य उद्देश्य क्या रहा है आपका? फिल्म बनाने का मेरा उद्देश लोगों को संदेश देना है। मैं इस फिल्म के माध्यम से न केवल उस प्रदेश के लोगों को बताना चाहता हूं बल्कि दूसरे प्रदेश के लोगों को भी बताना चाहता हूं, दिखाना चाहता हूं कि 2013 में जो दंगा हुआ जैसा लोगों के बीच में अफवाहें फैली कि वहां हिंदु-मुस्लिम एक दूसरे के दुश्मन हो चले हैं ऐसा कुछ नहीं है। बल्कि वहां लोग एक दूसरे के साथ मिलकर खुशी-खुशी जीवन यापन कर रहे हैं। हां यह अलग बात है कि दंगे के दौरान कुछ हादसे हुये, जिससे लोगों को विश्वास होने लगा कि वही सही है पर ऐसा नहीं है। मैं दंगे के वक्त वहीं पर था मैं लोगों में आपसी भाईचारा देखा। इस फिल्म के माध्यम से मैं उसी भाईचारे को दिखाना चाहता हूं, उसी आपसी प्यार को दिखाना चाहता हूं। जब मैने फिल्म बनाने के बारे में सोचा तो यह भी ख्याल आया कि दर्शकों को हम कैसे अपनी तरफ खीचेंगे। फिर मैने प्यार की बात की लेकिन संदेश को ध्यान में रखते हुए। सेंसर बोर्ड ने फिल्म के किसी भी सीन या संवाद को लेकर कोर्ई आपत्ति नहीं जताई। हां टायटल को लेकर उन्होंने एक सुझाव दिया था कि हो सकता है कि इससे आपको कोई परेशानी हो सकती है। इसलिये हमने टायलट को उनके सुझाव पर बदल दिया और किसी प्रकार की कोई परेशानी हमें बोर्ड की तरफ से नहीं हुई। फिल्म निर्देशक हरीश कुमार का विजन बिलकुल साफ है। किस चीज को कैसे करना है यह उन्हें बहुत अच्छी तरह आता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here