May 8, 2025

अपने भीतर ईश्वरीय प्रकाश के दिए जलाकर धनतेरस मनाएं : आशुतोष महाराज

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Shri Ashutosh Maharaj
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Faridabad News, 23 Oct 2019 : कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है। समुंद्र मंथन की पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान धन्वंतरी अमृत कलश लेकर समुंद्र से बाहर प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन को ‘धन्वंतरी त्रयोदशी’ भी कहते हैं। भगवान धन्वंतरी सृष्टि के प्रथम चिकित्सक व आयुर्वेद जगत के पुरोधा माने गए हैं। अतः इस दिन आयुर्वेदिक वैद्य विशेष तौर पर रोगियों को प्रसाद रूप में नीम की पत्तियों का नैवेद्य देते हैंक्योंकि नीम की पत्तियों का सेवन बेहद स्वास्थ्यवर्धक होता है और रोगमुक्त करने की अतुलनीय क्षमता रखता है। धनतेरस पर नए बर्तनों और चांदी के सिक्कों को खरीदने का भी विशेष प्रावधान है। मान्यता है कि ‘त्रयोदशी’ के दिन सिक्के या धातु निर्मित बर्तन खरीदने से तेरह गुणा मुनाफा होता है। धन्वंतरी जी के हाथों में अमृत युक्त धातु का कलश होने के कारण इस दिन नए बर्तनों को खरीदने की प्रथा भी है। इसके पीछे प्रतीकात्मक भाव यही है कि हम अपने जीवन रुपी पात्र या कलश को इस प्रकार तैयार करें कि वह अमृत से पूर्ण हो सके। इसी तरह चाँदी के सिक्के ‘चन्द्रमा’ के द्योतक हैं, जोकि मन में शीतलता और जीवन में संतोष धन के प्रतीक हैं। इस दिन खासतौर पर लोग धन को सद्कर्मों में लगाते हैं, ताकि दो दिन बाद, दिवाली के दिन, उनके घरों में देवी लक्ष्मी का आगमन हो सके।

धनतेरस के संबंध में प्रचलित एक लोक कथा के अनुसार राजा हिम के पुत्र की जन्म-कुण्डली में उसकी मृत्यु उसके विवाह के चार दिन बाद ही सर्प के दंश से होनी निश्चित लिखी थी। पर उसकी पत्नी ने इस निश्चित मृत्यु को विफल करने का कठोर संकल्प लिया। उसने चौथी रात को अपने पति के कक्ष के द्वार पर सोने-चाँदी के सिक्कों का ढेर लगा दिया और अपने पति के चारों ओर दीप जला दिए। फिर सारी रात दोनों ने जागकर काटी। कथा बताती है कि तय समय पर सर्प रूप में यमराज हिम के पुत्र के प्राण लेने के लिए उसके द्वार पर पहुँचे। पर सोने के अम्बार को चौखट पर देख और हिम के पुत्र को दीपों के प्रकाश के बीच जागृत देख, वे इतने प्रसन्न हुए कि उसके प्राण हरे बिना ही चले गए। इसलिए यह दिन ‘यमदीपदान’ नाम से भी प्रचलित है और इस दिन यम देवता के नाम पर दीप जलाए जाते हैं।

इस कथा मेंछिपा गहरा अध्यात्मिक रहस्य इस अटल सत्य से परिचित कराता है कि चौथी रात को भाव चार अवस्थाओं (शैशवावस्था, बालपन, युवावस्था, वृद्धावस्था) के बीतने पर, सभी के द्वार पर यमदूत ने दस्तक देनी है। परन्तु यदि हम मृत्यु की पीड़ा से बचना चाहते हैं, तो एक ही युक्ति है जो इस कथा में वर्णित है। सोने-चाँदी को द्वार पर रख दें भाव अपने आंतरिक घर से माया (विषय-विकार-वासना) को निकालकर बाहर कर दें। साथ ही, ईश्वरीय प्रकाश के दीये अपने भीतर प्रज्वलित करें। पूरी रात जागकर यानी साधना करते हुए जागृत अवस्था में जीवन व्यतीत करें। पर यह तभी संभव है, जब हम पूर्ण गुरु की शरणागत होकर ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करेंगे। यही संदेश देता है, धनतेरस का यह पावन पर्व!

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