लोधी राजपूत जनकल्याण समिति द्वारा परम श्रद्धेय कर्मयोगी स्वामी ब्रह्मानन्द जी की 42वीं पुण्यतिथि मनाई
फरीदाबाद, 14 सितम्बर। लोधी राजपूत जनकल्याण समिति फरीदाबाद द्वारा परम श्रद्धेय कर्मयोगी स्वामी ब्रह्मानन्द जी की 42वीं पुण्यतिथि समिति कार्यालय डबुआ कालोनी में मनाई गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता जयपाल सिंह लोधी ने की। मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री मीडिया कॉर्डिनेटर मुकेश वशिष्ठ, विशिष्ट अतिथि पार्षद भगवान सिंह, सुरेश पाठक, संस्थापक महासचिव लाखन सिंह लोधी, अध्यक्ष रूपसिंह लोधी, धर्म पाल सिंह लोधी, प्रोमिला लोधी जिला उपाध्यक्ष, भोपाल कश्यप, उदयवीर शास्त्री द्वारा दीप प्रज्ज्वलित किया गया एवं उपस्थितजनों ने स्वामी जी के समक्ष पुष्प अर्पित कर नमन् किया। मुख्य अतिथि मुकेश वशिष्ठ ने अपने बताया कि स्वामी जी की 1966 के आन्दोलन में सक्रिय भूमिका रही थी, उन्होंने बुन्देलखण्ड क्षेत्र में पिछड़ेपन और शिक्षा क्षेत्र में अद्वितीय कार्य किया। देश की आज़ादी के लिए कई बार जेल यात्राऐं कीं।
स्वामी जी का जीवन राष्ट्रहित, जनहित, व आध्यात्मिक क्षेत्र में अनुशासित प्रेरणादायक सराहनीय रहा है ऐसे संत महापुरुषों के जीवन से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए।
समिति के संस्थापक, महासचिव लाखन सिंह लोधी ने कहा कि स्वामी जी का जन्म 4 दिसम्बर 1894 को हमीरपुर राठ तहसील के बरहरा गांव में श्रीमातादीन एवं जशोदाबाई लोधी किसान परिवार में हुआ था। इनका मन आध्यात्मिक की ओर आकर्षित था। 23 वर्ष की आयु में हरिद्वार में हर की पौड़ी पर सन्यास ग्रहण कर अब शिवदयाल से गेरूआ वस्त्र धारण कर स्वामी ब्रह्मानन्द चुके थे। गंगा में खड़े होकर प्रतिज्ञा की अब जीवनपर्यन्त स्त्रीगमन नहीं करेंगे, कभी धन को स्पर्श नहीं करेंगे, सत्य पर अडिग रहेंगे। अपनी प्रतिज्ञा को जीवनपर्यन्त निभाया। जब देश में आज़ादी के लिए आन्दोलन चल रहे थे, पंजाब के भटिण्डा में एक सभा में महात्मा गांधी से मुलाकात हुई। स्वामी जी की कार्यशैली को देखकर गांधी ने कहा कि मुझे आप जैसे कर्मयोगी संतों की आवश्यकता है। दिल्ली सन् 1966 में बहुत बड़ी संख्या में साधु संतों के साथ साथ आमजन आन्दोलन जोकि गौरक्षा आदि विषयों से सम्बंधित था। उस समय की सरकार ने घबराहट में आन्दोलन को कुचलने के लिए हर सम्भव प्रयास किया परिणाम स्वरूप हताहत होने के साथ लोगों को जानें भी गंवानी पडी़ं। इससे आहत होकर स्वामी जी ने लगभग 500 साधु संतों के साथ अपनी बात कहने के लिए संसद में घुसने का प्रयास किया। खींच तान में स्वामी के साथ बहुत से संतों के कपड़े तक फट गए। इसी बीच एक सुरक्षा अधिकारी ने स्वामी जी से कहा महाराज जी संसद की गरिमा के अनुरूप आइये। सन् 1967 में कांग्रेस से रूष्ट स्वामी जी हमीरपुर राठ से जनसंघ पार्टी से लोकसभा जीत कर सबसे पहले भगवाधारी सन्यासी सांसद बनकर संसद में पहुंचे। उन्होंने गौहत्या पर कानून बनाने के लिए सर्वप्रथम मांग की। ये गरीबों, दलितों, वंचितों के लिए मशीहा के रूप में आवाज उठाते रहे। जातिवाद से उपर उठकर काम किया। डॉ. वी वी गिरी, पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने स्वामी जी को मनाया वे पुन: दूसरी बार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने।
स्वामी ब्रह्मानन्द ने अपनी सांसद निधि को शिक्षा क्षेत्र में अथवा गरीबों के कल्याण के लिए दान कर देते थे। और स्वयं ने जीवनपर्यन्त भिक्षा लेकर ही भोजन किया करते थे। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के हमीरपुर राठ में स्वामी ब्रह्मानन्द इण्टर कॉलेज, स्वामी ब्रह्मानन्द संस्कृत महाविद्यालय, स्वामी ब्रह्मानन्द कृषि महाविद्यालय जैसे संस्थान आज उन्हीं की देन है। जिसमें अनेकों छात्र-छात्राऐं शिक्षा लेकर देश की सेवा में लगे हैं। ऐसे कर्मयोगी, स्वतंत्रता सेनानी, प्रथम भगवाधारी संयासी सांसद, गौरक्षक, बुन्देलखण्ड के मालवीय, परोपकारी, समाज सुधारक, शिक्षा के सागर, देशभक्ति से ओतप्रोत ऐसे महान संत की अनदेखी कांग्रेस सरकार में भी हुई थी। आज वर्तमान सरकार में भी ऐसा ही प्रतीत होता है। ऐसे संत को अब तक भारत रत्न मिलना चाहिए ऐसी हम सबकी अभिलाषा है। आइये हम सभी मिलकर स्वामी ब्रह्मानन्द जी के श्रीचरणों में श्रद्धांजलि अर्पित कर नमन् करते हैं।
इस अवसर पर अर्जुन सिंह लोधी, नन्द किशोर लोधी, राजेश कुमार वर्मा, सुलेखा त्यागी, सुखदेवी, आशा लोधी, शीषपाल शास्त्री, भाईलाल लोधी, रामशरण शर्मा, सुदर्शन कुमार, ओसपाल पाठक, उदयवीर सिंह लोधी, दीपक यादव, रत्नेश सिंह, विकास कश्यप, ललित त्यागी, अजय कुमार लोधी, सुनील कुमार, सूरज पाल सिंह, चहलपाल सिंह, कृष्ण जीत डंग, चौधरी सूरज भान, ओमप्रकाश लोधी, किशन गोपाल लोधी, जयसिंह, नरेश कुमार, देशराज लोधी, गौरव कुमार, संजय, सुभाष चंद्र आदि उपस्थित रहे।