पराली का सदुपयोग कर पाए प्रदूषण से छुटकारा : आशुतोष महाराज

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New Delhi News, 07 Nov 2019 : भारत के लहलहाते खेत… हरियल भूमि। इस कृषि प्रधान देश की उपजाऊ धरतीअन्न रूपी धान उगलती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश… आदि राज्यों की मिट्टी गेहूँ, चावल, फल-सब्जियों की खानें हैं।सवा सौ करोड़ भारतीयों की अन्नपूर्णा है, भारत की धरती माँ। जन्म देने वालीमाँ तो फिर भी हमें साल-डेढ़ साल अपना दूध पिलाती है। परन्तु यह धरती माँ तोहमें आजीवन पोषित करती है।लेकिन हमारी यह अन्नपूर्णा माँ, जो हमें पोषित करती है, आज हमारी अज्ञानतासे प्रताड़ित हो रही है। इस लेख के माध्यम से हम पाठक-वर्ग, विशेषकर कृषि-जगत से सम्बन्ध रखने वाले पाठकों की जानकारी के लिए एक ज्वलंतसमस्या को उजागर कर रहे है..क्योंकि यदि अब नहीं जागे, तो कहीं हमेशा केलिए सोना न पड़ जाए!मैं धरती का एक टुकड़ा हूँ। भारत ने मुझे ‘धरती माँ’ का सम्बोधन दिया है।माँ का कर्तव्य होता है- जन्म देना और पालन-पोषण करना। मैं भी ऐसी एक माँहूँ। मेरा किसान बेटा मेरे सीने में कुछ मुट्ठी भर बीज बोता है। पर बदलेमें मैं उसे कई-कई क्विंटल अन्न उपजा कर लौटाती हूँ।जब मेरे खेतों में धान की लहलहाती फसल खड़ी होती है, तो किसान कटाई कापुरुषार्थ करता है। मशीन चलाकर वह अन्न से भरी फसल काट लेता है। धान तो अलगहो जाता है। पर पीछे खेत में पुआल गड़ी या बिखरी, दोनों रूप में रह जातीहै। अब किसानों को चिंता होती है कि एक महीने के अंदर-अंदर खेत को अगलीबिजाई के लिए तैयार करना है। समय कम है और खेत में 8-9 इंच ऊँचा पुआल गड़ाखड़ा है! उससे कैसे निजात पाई जाए? बिखरे हुए पुआल का भी निबटारा कैसे करें?ऐसे में, मेरे ये किसान बेटे अकसर एक बेहद खतरनाक रास्ता अपनाते हैं। मेरीनाजुक सतह पर, पुआल के बीच, घोर अग्नि प्रज्वलित कर देते हैं। आग की भीषणज्वालाएँ, तड़-तड़ करती हुईं, मुझ पर उगे या तितर-बितर हुए पुआल को लीलनेलगती हैं। इस तरह अकेले पंजाब में कई मिलियन टन पुआल हर मौसम में स्वाहा करदी जाती है।

अब तो नासा के वैज्ञानिकों की नजरें भी मुझसे उठती लपटों की ओर गई हैं।नासा की ‘Aqua’ नामक सैटालाइट (उपग्रह) से पंजाब क्षेत्र की तस्वीरें ली गईहैं। तस्वीरों के साथ संयुक्त रिपोर्ट स्पष्ट कहती है- ‘The whole Punjab appears to be literally on fire, from low earth orbit.’- लगभग पूरा पंजाबनिचले उपग्रहों से आग में झुलसता दिखाई देता है। 31 अक्टूबर, 2012 कोखींची गई तस्वीरों के साथ नासा अपनी वेबसाइट पर दर्ज करता है- ‘पंजाबक्षेत्र की इन तस्वीरों में दिखाई देती ये छोटी-छोटी लाल बिंदियाँ दरअसलजलते खेत हैं। What is striking about images is the large number of fires. Smoke from hundreds of fires obscures most of the Punjab region of India – इन जलते खेतों से उठता धुआँ लगभग पूरे पंजाब को ढके हुए है।’अक्टूबर व नवम्बर माह के दौरान यदि इन क्षेत्रों का दिग्दर्शन आप हवाई-जहाजया हैलीकॉप्टर से करते हैं, तो ये किसी युद्धग्रस्त या बमबारी से त्रस्तजलते-झुलसते इलाके लगते हैं।यही तो मेरी वेदना है! खेतों की यह आग मेरे अलग-अलग अंगों की जलती चिताओंजैसी ही हैं और मेरी ही क्यों! यह आग तो पृथ्वी के साथ-साथ पवन को भी मैलाकर रही है। मेरी चिताओं से सघन, काला धुआँ उठता है, जो कई-कई मील दूर तक केवायुमण्डल में राख और भस्म के कण घोल रहा है। भयंकर रूप से वायु-प्रदूषणफैला रहा है। विशेषज्ञ बताते हैं कि खेताग्नि से उठते धुएं में कार्बन कणोंके साथ-साथ कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन-डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन डाईऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसें भी होती हैं। आप ये लगा लीजिए किएक टन पुआल के जलने से 60 कि.ग्रा. CO, 1460 कि.ग्रा. CO2, 199 कि.ग्रा. राख और 2 कि.ग्रा. SO2वातावरण को दूषित कर जाती है।

इन प्रदूषणकारी गैसों के बहुत दूरगामी प्रभाव होते हैं। यदि पंजाब की बातकरें, तो वहाँ की खेताग्नि दिल्ली के प्रदूषण की मुख्य जिम्मेदार है। औरक्या आप जानते हैं, इस प्रदूषण का सीधा असर पूरे जीव-जगत को घायल करता है? अनगिनत बीमारियों की सौगात भेंट करने वाला यही धुआँ है। जैसे- गले मेंदर्द, एलर्जी, खाँसी, आँखों में रड़क, दमा, नजला आदि। जब कार्बन मोनोऑक्साइडगैस साँस द्वारा फेफड़ों में पहुँचती है, तो खून के हेमोग्लोबिन को नष्टकरने लगती है। सल्फर डाईऑक्साइड गैस जीव-मात्र की श्वास-नली को नुकसानपहुँचाती है और खाँसी व दमे जैसी बीमारियाँ पैदा करती है। यह गैस वायुमण्डलकी नमी के साथ रिएक्ट करके गंधक पूर्ण तेजाब तक उत्पन्न कर डालती है। हाइड्रोजन सल्फाइड व कार्बनिक सल्फाइड बड़े ही बदबूदार जहरीले पदार्थ होतेहैं, जो फेफड़ों का कैंसर, श्वास नली में सूजन, दमा, एलर्जी जैसी नामुरादबीमारियों के जनक होते हैं। मानव समाज में चर्म व नेत्र रोग के बढ़ने काकारण भी यही वायु-प्रदूषण है।यही नहीं, जरा मैं अपनी करुण दशा का भी चित्रण कर दूँ। जब मेरे सीने पर आगलगाई जाती है, तो मेरी कोख में पलते-खेलते अनेक जीव-जन्तु भी स्वाहा होजाते हैं। अबोध किसान यह नहीं जानते कि ये जन्तु दरअसल उनके मित्र-कीट हैं, जो धरा की उर्वरा-शक्ति को बनाए रखते हैं। अनगिनत बैक्टीरिया व सूक्ष्मजीवाणु खेत की मिट्टी को खाद की भांति जीवंत रखते हैं। मगर मिट्टी केअग्नि-ग्रस्त होने से जब तापमान बढ़ता है, तो यह मित्र-जगत सदा के लिए नष्टहो जाता है और फिर इस खोई उर्वरा शक्ति की भरपाई करने के लिए किसानरासायनिक खादों व जहरीले कीटनाशकों का जी भर के प्रयोग करते हैं। उनसे हानिकी तो अलग ही कहानी है।कृषि-विज्ञान के जानकार जानते हैं, पृथ्वी की 6 इंच मोटी ऊपरी सतह ही उपजाऊपन की मापदंड होती है। बारम्बार आग की लपटों से यह सतह झुलस-झुलस कर निष्प्राण-सी, बिल्कुल बेजान हो जाती है। मैं बंजर हो जाती हूँ। मेरीमिट्टी में व्याप्त नाइट्रोजन, फास्फोरस, सल्फर आदि पोषक तत्त्व भी बड़ीमात्रा में समाप्त हो जाते हैं।जब खेतों की आग भीषण होती है, तो वह आस-पास झूमते फलदार वृक्षों, फसलों, लाभदायी वनस्पतियों, औषधीय जड़ी-बूटियों आदि को भी लील जाती है। यहीं नहीं, झुलसी धरती अधिक मात्रा में सिंचाई हेतु जल मांगती है, जिसकी वजह से पानीजमीनी स्तर पर प्रबल रूप से घटता जा रहा है। आज बेमौसमी बरसातों या तूफानोंका आना, ध्रुवों में बर्फ पिघलना, ग्लोबल वार्मिंग होना- इन सबप्रकृति-विरोधी घटनाओं के पीछे एक बड़ा हाथ इन लाखों जलते खेतों का भी है।इसलिए मेरा आह्नान है, अपने किसान बेटों से कि वे इस विनाशकारी प्रक्रियाको बंद करें! आज बहुत सी राज्य सरकारों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। परसच्चे मायनों में यह क्रम तो तभी बंद होगा, जब तुम अंदर से जागोगे। अपनीधरती माँ और पवन पिता की वेदना को समझोगे।

प्रिय किसान भाइयों! धरती माँ की करुण पुकार हमें कहीं न कहीं झंझोड़ देतीहै। लेकिन ऐसे में एक अगला और स्वाभाविक प्रश्न उठता है- अगर पुआल को जलाएँनहीं, तो उसका क्या करें? उससे कैसे निजात पाएँ? जमीन को अगली खेती के लिएकैसे तैयार करें? इसका बड़ा प्रैक्टिकल समाधान हमें खोजना होगा।दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थानके संस्थापक व संचालकगुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी, जिनकी कर्म-साधना समाज की हर कुरीति पर सुदर्शन-चक्र चला रही है, वेकृषि-प्रधान भारत की इस समस्या के प्रति भी पूर्ण रूप से सजग रहे हैं। गतवर्षों से श्री महाराज जी ने पंजाब, हरियाणा आदि क्षेत्रों में तो इसकुप्रथा के विरुद्ध एक क्रांतिकारी अभियान छेड़ा हुआ है। गुरुदेव केमार्गदर्शन में संस्थान के नौजवान कार्यकर्ता जहाँ भी आसपास के क्षेत्रोंमें खेत जलते देखते हैं, उनका शमन करने तुरन्त दौड़े जाते हैं। भरसकप्रयासों से, शीतल फुहारों से, जलते खेतों को ठंडा करते हैं।इसी शृंखला में गुरु महाराज जी ने खेती के सम्बन्ध में बहुत सेप्रयोगात्मक शोध व प्रयोग (researches and experiments) भी किए हैं। अपनेअनुयायी किसानों को वे सदा यही सुझाव देते हैं कि पुआल जलाने से बेहतर हैकि उसकी मिट्टी में ही जुताई कर दो। जुती हुई पुआल एक बेहतरीन खाद सिद्धहोती है। कारण कि पुआल में बहुत अधिक मात्रा में कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, सल्फर, पोटाशियम आदि पोषक तत्त्व हुआ करते हैं। आजकल तकनीकीक्षेत्र में रोटावेटर (rotavator), जीरो ड्रिल (zero drill) जैसे यंत्रउपलब्ध हैं। इनकी मदद से मिट्टी में पुआल की जुताई हो जाती है और बिजाई भीसाथ में ही चलती है। जिन किसान-भाइयों या जमीदारों ने इस प्रयोग को अपनाया, उनके खेतों ने सोना उगला।

पर जो छोटे किसान हैं, जिनको ये यंत्र उपलब्ध नहीं, उन्हें भी निराश नहींहोना। उनके लिए बेहतर है कि वे फसल-चक्र अपनाएँ। गन्ना, तिलहन, दलहन आदिफसलों को अपने खेत में बोएँ। आजकल इन फसलों की बाजार में बहुत माँग है औरइन्हें बो कर आप पुआल के चक्कर से भी बचे रहेंगे। वैसे भी आजकल ऐसी-ऐसीआधुनिक मशीनें बन चुकी हैं, जिनसे पुआल द्वारा बिजली का निर्माण किया जाताहै। यहीं नहीं, पुआल द्वारा गत्ता बनाने वाली मिलें आजकल 80-100 रुपयेप्रति क्विंटल के हिसाब से पुआल खरीद कर किसानों को अच्छा मुनाफा दे रहीहैं। इसलिए बेहतर होगा कि आप अपने आस-पास के क्षेत्रों में ऐसी तकनीकीमशीनें या गत्ता मिलें खोज लें, जहाँ पुआल के बदले आर्थिक लाभ कमा सकें।पाठकगणों! हमें यह प्रकृति हमारे ही उपयोग के लिए मिली है। हम जितना इसकाख्याल रखेंगे, उतने ही लम्बे काल तक यह भी हमारा ख्याल रख पाएगी। सदा यादरखें! श्री महाराज जी कहा करते हैं-‘माँ प्रकृति का हमें शोषण नहीं करना, बल्कि उससे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए उसका संरक्षण करना है।’यह दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की मासिक पत्रिका “अखंड ज्ञान” से उद्ग्रित लेख है!

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