गुरु और शिष्य के प्रगाढ़ प्रेम को संसार की कोई भी शक्ति मिटा नहीं सकती

0
845
Spread the love
Spread the love

New Delhi News, 06 May 2019 : जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ एवं निरोग रखने के लिए समय पर पौष्टिक आहार लेने की आवश्यकता होती है, वैसे ही आत्मा को सशक्त बनाने हेतु नियमित आध्यात्मिक आहार की अनिवार्यता है। आध्यात्मिक आहार का अभिप्राय है- ध्यान द्वारा ईश्वर के साथ साम्य स्थापित करना। ईश्वर से जुड़कर व्यक्ति आध्यात्मिक सशक्तिकरण को प्राप्त करता है, जिसके माध्यम से वह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में आने वाली हर समस्या का सामना करते हुए, अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में सामर्थ्यवान बन जाता है।

भक्तों को भक्ति के मार्ग पर प्रोत्साहित करने के लिए दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिव्य धाम आश्रम, दिल्ली में आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। दिल्ली-एनसीआर के हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कार्यक्रम का शुभारम्भ ब्रह्मज्ञानी वेदपाठियों द्वारा वेद- मंत्र उच्चारण द्वारा हुआ। संत समाज व भक्तों के माध्यम से प्रस्तुत भक्ति संगीत की श्रृंखला द्वारा सकारात्मक स्वरों ने वातावरण में भक्ति व दिव्यता का संचार किया।

संस्थान के प्रचारकों द्वारा प्रदत्त आध्यात्मिक विचारों ने शिष्यों को भक्ति मार्ग पर बढ़ाने हेतु मील पत्थर के समान भूमिका निभाई। भगवान् और भक्त, गुरु और शिष्य के प्रगाढ़ प्रेम को संसार की कोई भी शक्ति मिटा नहीं सकती। ईश्वरीय व गुरु प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना सम्भव नहीं, परन्तु जीवात्मा इसका अनुभव कर आनंदित हो जाती है। पूर्ण गुरु की कृपा द्वारा ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति से मनुष्य ईश्वर को जान पाता है और उसके उपरांत प्रेम जागृत होता है। जहां एक ओर दुनिया के प्रति किया हुआ समर्पण हमारी ऊर्जा का क्षय कर उसे समाप्त करने लगता है, वहीँ दूसरी ओर गुरु के प्रति हमारी भक्ति व समर्पण हमें नई शक्ति और ऊर्जा प्रदान करता है। एक शिष्य को अपने गुरु के प्रति सदैव कृतज्ञ रहना चाहिए।

श्री आशुतोष महाराज जी का कथन है कि “एक आदर्श शिष्य चाहे छाँव हो या धूप, अनुकूल परिस्थिति हो या प्रतिकूल परिस्थिति हर समय सतगुरु के प्रति कृतग्य रहता है”। शिष्य जब इस भाव को बनाएं रखता है तो धीरे-धीरे उसकी सभी इच्छाएं समाप्त होने लगती है और वह शाश्वत आनंद की ओर बढ़ जाता है। वास्तव में वह भक्त ही पृथ्वी पर सबसे खुश व्यक्ति बन जाता है। किसी ने बहुत खूबसूरती से कहा है, “योग्य वह है जो अपने सभी सुखों के लिए प्रभु को धन्यवाद देना याद रखता है, लेकिन सराहनीय वह है जो जीवन में कठिनाइयों के बावजूद भी ईश्वर को धन्यवाद करता है”।
सत्संग एक महान साधन है जिसके माध्यम से एक शिष्य धैर्य, विवेक और ज्ञान आदि गुणों को प्राप्त कर पाता है। ध्यान सत्र के अंतर्गत अनेकों भक्तों ने सामूहिक प्रार्थना द्वारा विश्व शांति की मंगल कामना की। अंत में दिव्य भोज से आध्यात्मिक सभा को विराम दिया गया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here