सूरजकुंड मेले के स्टॉल नंबर 901 से 912 तक देश के कोने-कोने से पहुंचें दिव्यांग उद्यमी बन रहे हैं मेले की प्रेरणा

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Faridabad News, 09 Feb 2020 : इन लोगों के लिए दिव्यांगता कभी अभिशॉप थी। न खुद का कोई रोजगार था और न ही भविष्य की कोई राह दिखाई दे रही थी। लेकिन अगर एक बार मन में ठान लिया जाए तो किसी भी बाधा को दूर किया जा सकता है। ऐसी ही सफलता की कहानी को बयां कर रहे हैं 34वें अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले के स्टॉल नंबर 901 से 912 के देशभर से पहुंचे यह दिव्यांग लघु उद्यमी।

इन लोगों ने जब जीवन में कुछ करने की ठानी तो इनके पास पैसे की कमी सबसे पहले आडे आई। इसके बाद नेशनल हैंडीकैप्ट फाईनेंस एंड डेवलेपमेंट कार्पोरेशन (एनएचएफबीसी) इन लोगों की मदद के लिए आगे आई और 25 हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक के लोन इन दिव्यांगों को प्रदान किए गए और प्रशिक्षण भी दिलवाया गया। इस पैसे और प्रशिक्षण ने तो जैसे इनके पंखों को नई उड़ान दे दी थी। आज देशभर से आए यह उद्यमी इस सूरजकुंड मेले में अपने उत्पादों को लेकर पहुंचे और लोग इनका सामान भी हाथों-हाथ खरीद रहे हैं।

मेले में स्टॉल लगाने वाले मुंबई निवासी पैर से दिव्यांग अभिषेक कभी एक कंपनी में मजदूरी करते थे। 25 हजार रुपये का लोन लेकर हैंडीक्राफट का काम शुरू किया और आज इनके खुद के पास 12 कारीगर काम करते हैं। 12 लाख रुपये से उपर का प्रति महीने व्यापार करते हैं। कपड़ों पर इनके आरीवर्क को हर कोई पसंद कर रहा है। पुडुचेरी के हैय्यपन भी पैरों से दिव्यांग हैं। कभी घर में खाने के भी लाले थे लेकिन एक लाख रुपये लोन लेकर रोजगार शुरू किया तो आज इनकी आटिफिशियल ज्वैलरी सभी की पसंद बनती चली गई।

पंजाब के पटियाला जिला के रहने वाले विककी हाथ से दिव्यांग थे लेकिन मेहनत के बल पर इतना अच्छा कारोबार खड़ा दिया कि उनकी फुलकारी आज देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पसंद की जाती है। कोल्हापुर महाराष्ट्र से पहुंचे पांडुरंग ने कोल्हापुरी चप्पलों का कारोब शुरू किया तो आज उनकी कोल्हापुरी चप्पलों को सूरजकुंड में आने वाले हाथों-हाथ खरीद रहे हैं। चंडीगढ़ के अकील अहमद ने भी इसी ढंग से दिव्यांगता के बावजूद अपना हैंडीक्राफ्ट का व्यवसाय शुरू किया तो आज इनको हर कोई एक सफल व्यवसायी के तौर पर पहचानता है।

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