वार्डबंदी के खिलाफ सेव फरीदाबाद ने हरियाणा राज्य निर्वाचन आयोग व जिला उपयुक्त को भेजा लीगल नोटिस

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Faridabad News, 31 March 2022 : शहर की प्रमुख समाजसेवी संस्था सेव फरीदाबाद ने फरीदाबाद नगर निगम के आगामी चुनाव के लिए की जा रही वार्डबंदी के खिलाफ न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने का मन बना लिया है। इसी बाबत संस्था ने राज्य निर्वाचन आयोग, निदेशक, हरियाणा शहरी स्थानीय निकाय और जिला उपायुक्त फरीदाबाद को एक लीगल नोटिस भेज कर इस वार्ड बंदी को तुरंत प्रभाव से रोकने के लिए कहा है।

संस्था से अध्यक्ष पारस भारद्वाज और संस्था के कानूनी सलाहकार शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता ओपी शर्मा ने कहा कि यह वार्डबंदी बिलकुल असंवैधानिक और अनैतिक है। इससे ना केवल शहर की मूलभूत सुविधाओं का ढांचा बिगड़ेगा बल्कि सामाजिक सौहार्द भी समाप्त होगा।

पारस ने इस वार्डबंदी को शहर की जनता के लोकतान्त्रिक अधिकारों का हनन बताते हुए कहा कि भाजपा के निरवर्तमान निगम पार्षदों का कार्यकाल भ्रष्टाचार से लिप्त और बेहूदी व्यवस्था के लिए जाना जाएगा। पांच साल फरीदाबाद की जनता का खून चूसने के बाद अब किस प्रकार जनता की वोट को ठगा जाए उसी का प्रारूप है ये वार्डबंदी।
वार्डबंदी करते समय जनहित की बजाय दलहित और जातिगत राजनीति को केंद्र में रखा गया है।

पारस भारद्वाज का आरोप है कि इस वार्डबंदी को करते समय अधिकारियों द्वारा राजनीतिक आकाओं के कहने पर हरियाणा म्युनिसिपल एक्ट की धज्जियाँ उड़ाई गयी और जनता की बदहाली की पटकथा लिख दी गयी। परन्तु अब शहर की समाजसेवी संस्थाओं ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए इस वार्डबंदी को हाई कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है। इससे पहले भी 26 मार्च को मुख्यमंत्री की फरीदाबाद रैली से एक दिन पहले सभी सामाजिक संस्थाओं ने वार्डबंदी के खिलाफ एक मंच पर लामबंद होकर एक विशाल रोषयात्रा निकाली थी। इस रोष प्रदर्शन में वार्डबंदी की अधिसूचना को आग लगाकर संस्थाओं ने अपना गुस्सा जाहिर किया था। वार्डबंदी मोर्चे का एक प्रतिनिधि मंडल लगातार सांसद और केंद्रीय मंत्री कृषणपाल गुज्जर, सभी विधायकों, वार्डबंदी कमिटी के सदस्यों और प्रशासन के संपर्क में है और वार्डबंदी को समाज केंद्रित करने की गुहार लगा रहा है। परन्तु दुर्भाग्यवश किसी भी जनप्रतिनिधि ने जनता की भावनाओं के प्रति कोई सरोकार नहीं दिखाया।

सेव फरीदाबाद के पदाधिकारियों का कहना है कि यह वार्डबंदी पूर्णत: ख़ारिज होगी और उन्हें विश्वास है कि जनता के हितों की रक्षा यदि चुने हुए नुमाइंदे नहीं कर पा रहे हैं तो न्यायालय अवश्य करेगा।

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