सत्संग से होता है हमारे अंदर सुमति का सृजन

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New Delhi News, 16 dec 2019 : जिस प्रकार पके हुए फलों से लदा हुआ वृक्ष अपना सब कुछ धरती पर लुटा देना चाहता है, पूर्णिमा का चाँद अपनी सम्पूर्ण चाँदनी को धरती पर कुर्बान कर देना चाहता है, समुद्र की ओर बढ़ रही नदी अपनी अथाह जल राशि को सागर में समर्पित कर देना चाहती है और आसमान में प्रकट हुआ बादल स्वयं को पूरी तरह खाली कर धरती को तृप्त कर देना चाहता है ठीक उसी तरह सद्गुरुभी अपनी पूरी कृपा को अपने सेवक पर बरसा देना चाहते हैं। परन्तु किसको कितना और कैसे प्राप्त करना है यह सिर्फ सेवक की पात्रता पर निर्भर करता है।

यदि आज संसार की माया में सोए हुए लोगों का जीवन देखें तो पता चलता है कि उन्हें इस बात का थोड़ा सा भी बोध नहीं कि जीवन क्या है और क्यों मिला है? अगर गहराई से खोजा जाए तो कोई संसार में विकार रुपी नदी में डुबकी लगाकर अपना सारा जीवन व्यतीत कर देता है और कोई मोहमाया की बांसुरी के मुँह में गुम होकर जीवन समाप्त कर लेता है। परन्तु यह सद्गुरु की दयालुता ही है कि वह मनुष्य को ज्ञान और भक्ति की ऊँची कला प्रदान करते हैं। जिसके द्वारा मनुष्य के नरक समान जीवन में स्वर्ग का साम्राज्य स्थापित किया जा सकता है।

चाहे गाड़ी चलानी हो या ट्रेन में सफर करना हो । स्कूल में शिक्षा प्राप्त करनी हो या फिर खाना बनाना सीखना हो, हर कार्य को करने का अलग नियम होता है। ठीक इसी प्रकार भक्ति मार्ग के भी अपने नियम हैं। यदि भक्ति रुपी पौधे को बढ़ाते रहना है तो नियमित रूप से सत्संग में जरूर जाना चाहिए क्योंकि सत्संग भक्ति रुपी पौधे के लिए पानी के समान है जो समय-समय पर साधक की भावनाओं को सींचता रहता है और खरपत वार रुपी व्यर्थ की शंकाओं को जड़ से उखाड़ता रहता है। जिस प्रकार हम अपना मोबाइल फ़ोन अपडेट करते हैं, ऐप्स अपडेट करते हैं ठीक उसी तरह समय-समय पर सत्संग में जाकर अपनी भक्ति को भी अपडेट करते रहना चाहिए। दूसरा आपके मोबाइल फ़ोन में यदि कोई वायरस आ जाए तो आप उसको “वायरस-क्लीनर” के साथ साफ करते हैं। गुरुभक्ति के लिए सत्संग भी वायरस क्लीनर के सामान ही है जो साधक के मन में पैदा हो रहे वायरस रूपी शंकाओं और विकारों को समय-समय पर खत्म करता रहता है। सत्संग हमारे सभी संशयों का निवारण कर, हमारे भक्ति मार्ग को पोषित कर, हमे निरोगी बनाता है। इसलिए उसे कभी भी नही छोड़ना चाहिए।

सत्संग कुल्हाड़ी का भी काम करता है। जिस प्रकार कुल्हाड़ी के निरंतर वार से बड़े से बड़ा वृक्ष भी काटा जा सकता है उसी तरह बार-बार सत्संग सुनने से शंका रुपी वृक्ष भी जड़ से नष्ट हो जाता है। सत्संग विचार हमारे जीवन रुपी बर्तन को मांजने के लिए राख का काम करते हैं, जो इस बर्तन को साफ करते रहते हैं। सत्संग में आकर मन की सारी दुविधाएँ, जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं। हमारे सारे काले कर्मों की सियाही धुल जाती है और हम उज्जवलता की ओर बढ़ते हैं। हमारे शास्त्रों में भी सत्संग की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है कि जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने से सोना अपनी सारी मैल त्याग देता है ठीक उसी प्रकार सत्संग द्वारा मनुष्य के मन के सारे पाप, ताप नष्ट हो जाते हैं।

सत्संग एक ऐसी ज़ंजीर है जो साधक के मन को भक्ति के साथ बाँधकर रखती है।यदि इस ज़ंजीर के साथ मन को बार-बार ना बाँधा जाए तो साधक का मन हर वह कार्य करने की चेष्ठा करेगा जिसके द्वारा वह भक्ति मार्ग से भटक सकता है।क्योंकि मन का कार्य ही है हमारे अन्दर दुर्बुद्धि को पैदा करना और सत्संग का काम है साधक के अन्दर सुमति का सृजन करना। कबीर साहिब जी इस बात को स्पष्ट करते हुए कहते हैं- कबीर संगत साधु की, नित प्रति की जै जाय।दुर मति दूर बहावासी, देशी सुमति बताये।।अर्थात हमे निरंतर सत्संग में जाना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा हमारी दुर्बुद्धि का नाश होता है और हमारे अन्दर सद्बुद्धि का प्रवेश होता है।सत्संग द्वारा सुमति प्राप्त कर बड़े-बड़े पापी भी अच्छे इंसान बन जाते हैं।शुभ विचार के प्रभाव को तो आज का विज्ञान भी महत्त्व देता है।एक बार कुछ डॉक्टरों ने एक दुष्ट व्यक्ति को सिर्फ शुभ विचारों के द्वारा ही ठीक कर दिखाया। वह व्यक्ति अपराधी प्रवृत्ति रखने वाला था| बार-बार अपने अपराधों के कारण सज़ा प्राप्त करता और जेल से भाग जाता था।

उस डाकू के विचारों के शुद्धिकरण के लिए उसे गहरी नींद में सुलाकर उसके पास शुभ विचार, गीता-पाठ और भक्ति के साथ ओत प्रोत भजन लगा दिए जाते थे।कुछ समय के लिए जब वह नींद से बाहर आता तो इन शुभविचारों और प्रभु भजनों को सुनता, जिसके कारण धीरे-धीरे उसमें बहुत परिवर्तन देखा गया।उसकी दुष्ट प्रवृति खुद ही छूट गई। पर जब यह शुभ विचारब्रह्म-ज्ञान के साथ जुड़ जाता है और इन विचारों को देने वाला ही ब्रह्मज्ञानी हो तो यह शुभविचार सत्संग बन जाते हैं और इनका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।

आज सर्व श्री आशुतोष महाराज के मार्गदर्शन में इस सत्संग थैरेपी के द्वारा जेलों में बंद कितने हिंसक-कैदी, अपराध प्रवृत्ति रखने वाले लोगों को भक्ति भावों से भरपूर किया जा रहा है। संक्षेप में कहे तो सत्संग ही माध्यम है जिसमें मनुष्य की चेतना को झँझोड़ कर उसे बदलने की सामर्थ्यता है।परन्तु अक्सर लोगों का यह कहना है कि सत्संग में तोदृष्टान्त, कहानियाँ और बातें ही होती हैं। भला इनके द्वारा किसी में परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है? यही बातें एक बार किसी ने स्वामी विवेकानंद से पूछीं कि आप कुछ समय अच्छे विचारों का लेक्चर क्यों देते हो और यह आस करते हो कि इस के द्वारा लोगों के जीवनमें परिवर्तन आ जायेगा।परन्तु मुझे तो इसमें कोई लाभ नहीं लगता। बातें किसी के जीवन और मन पर कैसे प्रभाव डाल सकती हैं? विवेकानन्द ने उस व्यक्ति को कहाकि मैं आपके इस सवाल का जवाब कल दूंगा। अगले दिन मंच पर परमात्मा की बातें करते करते अचानक स्वामी जी ने उस सवाल पूछने वाले व्यक्ति को अपशब्द कहने शुरू कर दीं।वह व्यक्ति अपने स्थान से खड़ा हो गया और कहने लगा- ‘स्वामी जी! यह आप क्या कर रहे हैं? आपको मुझे इस तरह अपशब्द बोलने का कोई अधिकार नहीं है।’स्वामी जी ने कहाकि क्षमा करना!मैं आपको अपशब्द न हीं बोल रहा बल्कि आपके कल वाले सवाल का जवाब दे रहा हूँ। अब आप खुद ही बताईए की मेरे द्वारा आपको मंच से गलत बोलने का प्रभाव हुआ या नहीं? आपने खुद ही देख लिया कि आपके ऊपर इसका पृथक प्रभाव पड़ा है।इस लिए यदि मेरे गलत बोलने से आप पर इतनी जल्दी प्रभाव पड़ सकता है तो फिर आप ही सोचिए कि मेरे सही और सच बोलने का क्या सभी पर प्रभाव नहीं पड़ेगा?जरूर पड़ेगा और पड़ भी रहा है।कई लोगों ने मेरी इन्हीं बातों को सुनकर सत्य के मार्ग पर चलना शुरू कर दिया है।

जी हाँ, सत्संग में सुनाई जाने वाली बातों का मनुष्य के मन पर प्रभाव ज़रूर पड़ता है।इस लिए मनुष्य को सत्संग में अवश्य जाना चाहिए।हम दुनिया को तब ही बदल पाएंगे यदि स्वयं को बदलेंगे।सत्संग ही हमें भक्ति मार्ग के बाकी सभी नियमों और आज्ञाओं, चाहे वह साधना है या सेवा, के बारे में बोध कराता है।इसके द्वारा ही हम स्वयं और फिर समाज को बदल सकते हैं।

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