जो ईश्वर का चिन्तन करता है वह स्वतः ही चिन्ता से मुक्त हो जाता है : साध्वी आस्था भारती

0
473
Spread the love
Spread the love

New Delhi News, 11 July 2021 : दिव्य धाम आश्रम, दिल्ली में दिनांक 10 से 16 जुलाई 2021 तक ‘श्रीमद् भागवत् कथा’ का भव्य एवं विशाल आयोजन किया जा रहा है। कोरोना महामारी के कारण सम्पूर्ण समाज मानसिक तनाव व अस्वस्थता से ग्रसित हुआ है| इस दौर मे मेंटल हैल्थ बनाए रखना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है| ऐसे मे सकारात्मकता का प्रवाह करने के उदेश्य से दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान भगवान श्री कृष्ण की आध्यात्मिक प्रेरणाओं को डिजिटल श्रीमद् भागवत् कथा के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व के लिए लेकर आया है।

श्रीमद् भागवत् कथा के द्वितीय दिवस भगवान की अनन्त लीलाओं में छिपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को कथा प्रसंगों के माध्यम से उजागर करते हुए दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक एवं संचालक गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या भागवताचार्या महामनस्विनी विदुषी सुश्री साध्वी आस्था भारती जी ने अभिमन्यु की शौर्य गाथा एवं प्रह्लाद प्रसंग प्रस्तुत किया। साध्वी जी ने अभिमन्यु की शौर्य गाथा का वर्णन करते हुए बताया कि अभिमन्यु ने चक्रव्यूह का भेदन करना माता के गर्भ से ही सीखा था अर्थात शिशु माता के गर्भ से ही संस्कार लेकर उत्पन्न होता है। साध्वी जी ने मातृ शक्ति का आवाहन करते हुए उन्हें अपनी संतानों को अभिमन्यु जैसे संस्कार देने के लिए प्रेरित भी किया। आज ऐसी ही मूल्याधारित शिक्षा श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में ‘संपूर्ण विकास केन्द्र-मंथन’ द्वारा समाज में पहुँचाई जा रही है। विशेषकर जिसमें समाज के गरीब बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है। जहाँ केवल उनका बौद्धिक विकास ही नहीं बल्कि आत्मिक उत्थान भी हो रहा है।

आगे उन्होंने बताया कि किस प्रकार भक्त प्रह्लाद ने ईश्वर भक्ति के सम्मुख अपने पिता हिरण्यकशिपु द्वारा दिए जाने वाले नाना प्रकार की यातनाओं की परवाह नहीं की तथा कोई भी प्रलोभन एवं बाधा उसे भक्ति-मार्ग से विचलित नहीं कर पाई। साध्वी जी ने इस प्रसंग में बताया कि मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी भक्त घबराता नहीं, धैर्य नहीं छोड़ता। क्योंकि भक्त चिन्ता नहीं, सदा चिन्तन करता है और जो ईश्वर का चिन्तन करता है वह स्वतः ही चिन्ता से मुक्त हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवद्‌गीता में कहते हैं: अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।। अर्थात् जो भक्त ईश्वर को अनन्य भाव से भजते हैं उसका योगक्षेम स्वयं भगवान वहन करते हैं। परंतु ईश्वर का चिन्तन तभी होगा जब हमारे भीतर उनके प्रति भाव होंगे। आज कितने ही लोग ईश्वर को पुकार रहे हैं किंतु वह प्रकट क्यों नहीं होते? द्रौपदी की ही लाज क्यों बचाई, प्रह्लाद की रक्षा क्यों हुई, संत मीरा या कबीर जी की तरह वह हमारी रक्षा क्यों नहीं करते? इसका कारण यह है कि हमने ईश्वर को देखा नहीं, जाना नहीं, उनकी शरणागति प्राप्त नहीं की। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि जिस प्रकार प्रभु ने प्रह्लाद की रक्षा की, उसी प्रकार हमें भी प्रभु की शाश्वात भक्ति प्राप्त हो तो हमें भी नारद जी के समान तत्वदर्शी ज्ञानी महापुरुष की शरण में जाकर उनकी कृपा से ईश्वर के तत्त्व स्वरूप का दर्शन कर उनके द्वारा बताए गए मार्ग-दर्शन में चलना होगा। तभी जीवन में भक्ति का रंग लग पाएगा। साध्वी जी ने इसी प्रसंग में होली महोत्सव की भी चर्चा करते हुए कहा कि जीवन की कालिमा सुंदर भक्ति रंग से ही दूर की जा सकती है। भक्त सदा उसी भक्ति रंग में रंगकर संसार को भी रंगने का प्रयास करते हैं।
इस भव्य कथा द्वारा श्रद्धालुगण 16 जुलाई तक प्रभु के अनेक रूपों और लीलाओं का आनंद लेते हुए अपने जीवन को लाभान्वित कर पायेंगे। कथा का विशेष प्रसारण संस्थान के यूट्यूब चैनल पर किया जा रहा है। इस लिंक पर जाकर आप कथा का online वेबकास्ट अवश्य देखें: https://www.youtube.com/djjsworld । प्रसारण का समय प्रातः10 से दोपहर 1 बजे तक तथा सायं 7 से रात्रि 10 बजे तक है।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here