माँ के हाथों में है स्वर्णिम भविष्य की डोर

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New Delhi News, 09 May 2019 : मई महीने का दूसरा रविवार…. माँ को समर्पित एक विशेष दिवस! हर वर्ष यह दिन माँ के प्रेम, त्याग, तपस्या के प्रति कृतज्ञता तथा सम्मान प्रदर्शित करने के लिए मातृदिवस (Mother’s Day) के रूप में मनाया जाता है। आइए, इस दिवस के उपलक्ष्य में हम इतिहास की उन माताओं को याद करते हैं, जिनके नाम से माँ शब्द भी गौरवान्वित हो उठा था।

वह माँ जिसने दिया, विश्व को युग का महान दार्शनिक….
चौथी सदी ईसा पूर्व मेनसियस नाम का एक बालक बड़ी ही कठिन परिस्थितियों में पैदा हुआ। पैदा होते ही सिर से पिता का साया उठ गया। मेनसियस की माँ झांग अभी इस दुःख से उबर भी नहीं पाई थीं कि उन पर दम तोड़ती गरीबी की मार पड़ने लगी। बड़ी मुश्किल से उन्होंने एक रिहाइश का इंतज़ाम किया, जो कब्रिस्तान के नज़दीक थी। हर समय वहां से चीखने-चिल्लाने और रोने की आवाज़ें आती रहती थीं। मेनसियस देखा-देखी उन आवाज़ों की नकल उतारने लगा। यह देख झांग बेहद चिंतित हो उठीं। सो, उन्होंने जैसे-तैसे, बड़ी मुश्किलों का सामना कर कब्रिस्तान से दूर बाज़ार के नज़दीक एक ठिकाना ढूंढा। किसी भी हाल में झांग मेनसियस के भविष्य के साथ समझौता नहीं करना चाहती थीं। पर कुछ ही दिनों बाद, झांग ने मेनसियस को फिर नकल करते देखा। इस बार व्यापारियों की। मेनसियस सारा-सारा दिन व्यापारियों की तरह भाव-तोल करना, व्यर्थ की दलीलें देना और बहसा-बहसी करने में उलझा रहता। पैसों की बेइन्तहाँ तंगी के बावजूद भी झांग ने फिर घर बदलने की ठानी। इस बार उन्होंने घर एक स्कूल के नज़दीक लिया। समय के साथ, मेनसियस ने फिर नकल की। इस बार विद्वत अध्यापकों की, जो स्कूल में पढ़ाया करते थे। स्कूल के वातावरण का मेनसियस पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वह अच्छे और अर्थपूर्ण साहित्य को पढ़ने का आदी हो गया। अपने बेटे का ऐसा रुझान देखकर माँ झांग बेहद संतुष्ट और खुश थीं। आगे चलकर मेनसियस एक महान दार्शनिक के रूप में उभरा। मेनसियस की सफलता के पीछे उसकी माँ का त्याग और तपस्या थी। इसलिए 2000 साल बाद भी यह चीनी मुहावरा मेनसियस के निर्माण की दास्तां गुनगुनाता है- ‘Mencius mother moved three times’- मेनसियस की माँ ने तीन बार घर बदला|’

वह माँ जिसने ईश्वर के पथ का अनुगामी बनाया…
माँ मोनिका हर कदम पर अपने पुत्र ऑगस्टाइन के लिए सर्वश्रेष्ठ अवसर खोजती रहती थीं| उन्होंने न केवल उसे सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया बल्कि उसके करियर का भी ध्यानपूर्वक चयन किया| 17 साल की उम्र में ऑगस्टाइन ने लेटिन भाषा सीखी। पर मोनिका शुरुआत से अपने पुत्र की आध्यात्मिक सेहत को लेकर खासा चिंतित रहती थीं। वे उसे ईश्वर व सच की राह पर बुलंदी से बढ़ता देखना चाहती थीं। पर बावजूद इसके वह गलत संगति में पड़ गया। माँ के बेहद समझाने पर भी वह प्रार्थनाओं में मन नहीं लगा पाता था। आखिरकार वह घर छोड़कर भाग गया।

इतना सबकुछ होने पर भी मोनिका ने धैर्य नहीं छोड़ा। वे अपने पुत्र को सही राह पर लाने के लिए ईश्वर के आगे खूब रोतीं, प्रार्थनाएँ करतीं। स्वयं ऑगस्टाइन ने अपनी आत्मकथा ‘कंफेशंस’ में लिखा है- ‘जहाँ साधारण माताएँ अपने पुत्र के मरने पर हज़ारों आँसू बहाती हैं, उससे कहीं अधिक मेरी माँ ने मेरी आत्मिक जड़ता को लेकर आँसू बहाए।’

आखिरकार एक माँ की प्रार्थनाएँ स्वीकार हुईं। मोनिका की महान संत एम्ब्रोस से भेंट हुई जिन्होंने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा- ‘इतने अधिक आँसुओं से सींचा हुआ पुत्र जड़ रह जाए, यह संभव नहीं है।’ कुछ ही समय बाद, संत-वचन और माँ की सच्ची भावना रंग लाई। ऑगस्टाइन ने संत एम्ब्रोस से बपतिस्मा ग्रहण किया। जो बच्चा धर्म में ज़रा भी रूचि नहीं रखता था, वही आगे चलकर धर्म प्रचारक बना।

अतः ऑगस्टाइन के संत ऑगस्टाइन बनने के पीछे मोनिका जैसी असाधारण माँ का समर्पित ह्रदय था।

वह माँ जिसने अपने हर बच्चे का भविष्य गढ़ा….
भारतीय इतिहास में मदालसा एक अविस्मरणीय माँ के रूप में चर्चित हैं। उनके चार पुत्र हुए। अपने पहले पुत्र विक्रांत के जन्म पर उसे रोता देखकर उन्होंने लोरी गाई- हे पुत्र! तू मत रो। तू निराकार, शुद्ध आत्मा है। तेरा कोई नाम नहीं है। ये दुःख तो तेरे शरीर से जुड़े हैं, जो पंचभूतों से निर्मित है। तू इससे परे है। तू वह है! वह! फिर किस कारण रोता है?

इस तरह मदालसा अनेक शिक्षाप्रद गीतों और आध्यात्मिक लोरियों से विक्रांत को गढ़ती गईं। नतीजा- विक्रांत एक संन्यासी बना। उसने सांसारिक ताने-बाने न बुनकर ईश्वर की धुन गुनी। उनके दूसरे पुत्र सुबाहु व तीसरे पुत्र अरिमर्दन ने भी अपने बड़े भाई की ही राह पकड़ी। चौथे पुत्र अलर्क के होने पर राजा ने रानी से अपनी इच्छा ज़ाहिर करते हुए कहा कि वे अपने इस पुत्र को कुशल राजा बना देखना चाहते हैं। सो, मदालसा ने अलर्क को बचपन से ही न्यायप्रिय राजाओं की गाथाएँ सुनाई व प्रजा के हित की नीतियाँ सिखाई। फलस्वरूप अलर्क एक विवेकी व शक्तिशाली राजा बना। बाद में, उसने भी संतों की चरण रज पाई।

इस तरह मदालसा ने अपने हर बच्चे पर दिव्य प्रभाव डाला। इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जहाँ एक माँ ने अपने बच्चों को हर परिस्थिति में ईश्वर पर विश्वास करना सिखाया। न्यूटन, एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्पष्ट कहते हैं कि उनकी माँ की बदौलत ही वे बचपन से ईश्वरोन्मुख हुए। फ़्रांसी जनरल फर्डिनेंड प्रथम विश्व युद्ध के सैन्य कमांडर, ‘Man of Prayer’ यानी ईश्वर में अटूट आस्था रखने वाले के नाम से प्रख्यात हैं। इसके पीछे भी उनकी माँ ही थीं, जिन्होंने उन्हें हर हाल में ईश्वर से प्रार्थना और उन पर विश्वास करना सिखाया। जार्ज वाशिंगटन, संयुक्त अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति में राजनीति और सामाजिक नैतिकता के पाठ भरने वाली भी उनकी माँ ही थीं, जिस कारण वे तन्मयता से देश सेवा कर पाए।

इन सभी उदाहरणों से सिद्ध होता है कि एक बच्चे के जीवन में माँ की अहम भूमिका होती है। ये सभी प्रेरणास्पद ऐतिहासिक घटनाएँ वर्तमान समय की माताओं के लिए प्रेरणाएँ हैं कि वे भी अपने बच्चों को शुभ संस्कारों से पोषित कर उनका सुंदर निर्माण करें और अपने मातृत्व को सार्थक करें।

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