ईश्वर की ध्यान साधना ही मोक्ष की सीढ़ी

0
1793
Spread the love
Spread the love

New Delhi News, 03 June 2019 : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिव्य धाम आश्रम, दिल्ली में आयोजित मासिक आध्यात्मिक कार्यक्रम में श्रद्धालुओं को गुरु भक्ति व ध्यान के गूढ़ तथ्यों से अवगत करवाया गया। दिल्ली और एनसीआर के विभिन्न क्षेत्रों से उपस्थित भक्तों ने प्रेरणादायक व आध्यात्मिक विचारों से दिव्य ऊर्जा को ग्रहण किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ श्रद्धेय गुरुदेव के चरण कमलों में विनम्र प्रार्थना व भजन श्रृंखला से हुआ, तदुपरांत सतगुरु सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के विद्वान उपदेशक शिष्यों द्वारा आध्यात्मिक प्रवचन प्रदत्त किए गए। उन्होंने बताया कि सत्य और दिव्यता के मार्ग पर अग्रसर शिष्य को ध्यान में एकाग्रता की कमी आदि अनेक बाधाओं से जूझना पड़ता है। भौतिक जगत के प्रभाव से साधक की ऊर्जा का क्षय होता है, जिस कारण आध्यात्मिक जगत में उसकी गति बाधित होने लगती है। जीवन व मृत्यु चक्र से मुक्त होने के लिए साधक को सर्वोच्च चेतना में ध्यान स्थापित करना अनिवार्य है। इस स्थिति में यह प्रश्न उठता है कि मन की चंचलता और प्रकृति से प्रभावित हुए बिना आध्यात्मिक अनुभवों के रत्नों को कैसे सहेजा जाए। ब्रह्मसूत्र में इसका समाधान देते हुए कहा गया है कि मात्र गुरु कृपा द्वारा ही यह सम्भव है।

संस्थान के प्रचारकों ने विचारों के माध्यम से समझाया कि ध्यान के दौरान हमारा चंचल मन सदैव विचारों की गलियों में दौड़ने लगता है, इस चंचल मन को ध्यान में स्थित करने का सूत्र है “ध्यानमूलम गुरुर्मूर्ति” अर्थात दिव्य गुरु के स्वरूप पर मन को एकाग्र करना, “पूजा मूलं गुरुर्पदम्”- पूजा का मूल गुरु के पावन चरण है, एक शिष्य के लिए गुरु के आदेश व वाक्य ही महामंत्र है, “मंत्र मूलं गुरोर्वाक्यम्” और गुरु की कृपा ही मोक्ष का आधार है- “मोक्षमूलम गुरुरूपा”। ध्यान ही मोक्ष की सीढ़ी है, और शिष्य को ध्यान की प्रगाढ़ता हेतु गुरु कृपा के लिए निरंतर प्रार्थना करनी चाहिए। प्रचारक शिष्यों ने विचारों के द्वारा सतगुरु के अमूल्य अनुभवों और मार्गदर्शन को भक्तों के समक्ष रखा। उन्होंने भक्तों से आग्रह किया कि वे आलस्य और प्रमाद का त्याग करते हुए ईश्वर के साम्राज्य तक पहुँचने की अभिलाषा को तीव्र करें। योगानंद परमहंस जी ने भी इस तथ्य को अपने विचारों में कहा है कि “ध्यान की गहराई में गोता लगाने के लिए अपनी पूरी इच्छा शक्ति समर्पित करो। शब्दों से परे, आपकी इच्छा शक्ति आपको ऊपर उठाएगी और आपकी प्रगति करेगी। आप उस वास्तविक शांति, आनंद और परमानंद को प्राप्त कर लेंगे। ईश्वर का प्रतिबिंब आपकी इच्छा-शक्ति में छिपा है”।

यह आयोजन शिष्यों के जीवन में आध्यात्मिक उत्थान के रूप में चिन्हित हुआ। साधकों ने नई उम्मीद और नए उत्साह को सहेजते हुए, सतगुरु के चरण कमलों में हृदय से कृतज्ञता को प्रगट किया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here