आध्यत्मिक उत्थान हेतु अपने दुर्गणों, विकारों का बलिदान देंकर जीवन को सुखद बनाए

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New Delhi News, 06 Jan 2020 : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिल्ली स्थित दिव्य धाम आश्रम में आध्यात्मिक मार्ग पर बढ़ रहे शिष्यों को भक्तिपथ पर प्रेरित करने के लिए मासिक सत्संग समागम का आयोजन किया गया! संस्थान द्वारा आयोजित किए जाने वाले यह मासिक कार्यक्रम श्रद्धालुओं में पुन: भक्ति का संचार तो करते ही है तथा सत्य मार्ग पर निरंतर प्रयासरत रहने के लिए आतंरिक उर्जा भी प्रदान करते है।

कार्यक्रम में संस्थान के प्रतिनिधियों ने अपने प्रवचनों में समझाया कि हमारी मानव जाति की एक सामान्य और अंतर्निहित विशेषता रही है कि वह आध्यात्मिक प्रगति के लिए हमेशा आगे बढ़ती रही है। यदि कोई भी सभ्यता जो सुधार चाहती है उसे शारीरिक एवं मानसिक स्थिति को सूक्ष्म रूप से सुधारने के लिए आध्यात्मिक स्तर परकाम करना पड़ता है। और ऐसे शिष्यों के उत्थान के लिए एक पूर्ण ब्रह्म निष्ट गुरु के सौम्य मार्गदर्शन में ही सत्य के अनुयायियों (आध्यात्मिक शिष्यों) को सभी दुर्गणों, विकारों का बलिदान भी करना पड़ता है! इस प्रयास के दौर में शिष्य निश्चय ही परीक्षा का सामना करते हैं तथा बाहरी एवं आंतरिक जगत दोनों ही क्षेत्रों में कठिन परिस्तिथियों से गुजरते हैं l इतिहास बताता है किऐसे कठिन समय में यह आध्यात्मिक कार्यक्रम ही शिष्यों में पुन: ऊर्जा का संचार कर उसे सत्य मार्ग पर चलना सिखाते है! अध्यात्मिक ऊर्जा से ही समाज में शांति एवं चिरस्थायी आनंद का संचारहोता हैl गुरु द्वारा प्रदान की गई आज्ञाएजैसे साधना, सेवा एवं सत्संगएक तलवार की मानिंद न केवल शिष्य की रक्षा करती हैं बल्कि उसके भीतर की नकारात्मकता से भी लड़ने में मदद करती हैं।

इतिहास में ऐसे असंख्य उदाहरण आते है जिनमें कैसेशिष्यों ने गुरु की आज्ञाओं पर चल करकष्टकर परिस्थितियों में भी धर्म का पालन करते हुए विपरीत परिस्थितयों का मुकाबला कियाl नन्द राजवंश के शासन काल में हमारी महान मातृभूमि ने यूनानी आक्रांत सिकंदर और राजा धनानंद के क्रूर शासन का सामना कियाlयह तो पूर्ण गुरु ऋषि चाणक्य की दर्शिता थी, जिन्होंने चन्द्रगुप्त को विभिन्न युद्धों को लड़ने, भ्रष्ट शासक को खत्म करने और सदाचार स्थापित करने तथा अखंड भारत की स्थापना हेतु उसे सयुंक्त भारत का राजा बनाकर पुन: धर्म की स्थापना की थीlविपरित परिस्थितिओं में भी अपने गुरु के प्रति विश्वास और उनके आदर्शों के अनुरूप आत्मसमर्पण ने ही चन्द्रगुप्त को सफलता के शिखर तक पहुंचाया और हमारी मातृभूमि के लिए स्वर्णिम युग आयाथाlगुरु की कृपा प्रत्येक शिष्य पर सामान रूप से बरसती है परन्तु जो शिष्य निराशा के समय अविचलित धैर्य रखते हुए अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास रखते हैं वही इतिहास बनाते हैंlगुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के प्रचारक शिष्यों ने आगे बताया कि यह ऐसा समय चल रहा है जो एक नए युग के आने की प्रतीक्षा कर रहा है जिसमें हमें यह सुअवसर मिला है कि हम भी इस युग में गुरु आज्ञाओं पर चल कर समाज कल्याण हेतु योगदान देकर स्वयं का कल्याण तो करें ही साथ ही विश्व शांति के लिए भी अपना सम्पूर्ण सहयोग देंl
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी हमेशा से ही प्रत्येक शिष्य का हर कदम पर मार्गदर्शन करते आए हैंl उन्होंने प्रत्येक शिष्य को आत्मज्ञान प्रदान कर उनका बाहरी एवं आंतरिक विकास किया है और कर रहे हैl अब समय है हमारा शिष्य धर्म निभाने का कि हम भी इस भक्ति मार्ग पर निष्ठाभाव से आगे बढ़ें एवं विश्व शांति के इस महान लक्ष्य में स्वयं को गुरु के दिव्य हाथों में सौंप कर उनके यन्त्र बनेंl

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