भाषा केवल सम्प्रेषण का माध्यम नहीं होती अपितु संस्कृति की वाह कभी होती है : मंथन- सम्पूर्ण विकास केंद्र

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New Delhi, 4 Sep 2020 : भाषा का किसी भी देश की संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ता है यह हम भारतीयों से बेहतर कौन जानता होगा जो अंग्रेज़ी भाषा से प्रभावित होकर पश्चिमी सभ्यता में रंगते चले गए। भाषा सीखना बुरा नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय भाषा की गरिमा को ताक पर रखकर ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।किन्तु आज हिंदी की स्थिति यह है कि विश्व में तीसरी सबसे ज़्यादा बोली जाने के बावज़ूद भी यह संयुक्त राष्ट्र संघ में उपेक्षित है। इसका कारण केवल यही है कि यह अपने ही घर में उपेक्षित है।हिंदी की स्थिति से संतुष्ट तो नहीं हुआ जा सकता किन्तु इस दिशा में प्रयास अवश्य किये जा सकते हैं। देश की मातृभाषा को सम्मान देने और भारतीयों को हिन्दी के प्रति अपने कर्तव्य का बोध कराने के लिए सन् 1953 से प्रतिवर्ष संपूर्ण भारत में 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।

हिंदी के निर्बाध प्रसार में अपना योगदान निभाते हुए मंथन-सम्पूर्ण विकास केंद्र ने अपने सभी छात्रों एवं शिक्षकों के लिए “हिंदी दिवस” के उपलक्ष्य में 14 सितंबर 2020 को एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमती पद्मावती पांडे (हिंदी में बीए, बीएड, एमए) उपस्थित रहीं। श्री मती पद्मावती पांडे गत 33 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं।उन्होंने भारतीय प्रतिष्ठित सरकारी और निजी विद्यालयों, भारतीय दूतावास और केंद्रीय विद्यालयों के साथ समन्वित सह-पाठयक्रम गतिविधियों में अपना श्रेष्ठ योगदान दिया है। मंथन-संपूर्ण विकास केंद्र, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान (DJJS) काएक सामाजिक प्रकल्प है जो कई वर्षों से देश के अभाव ग्रस्त बच्चों को निःशुल्क एवं मूल्याधारित शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उनके संपूर्ण व्यक्तित्व को निखारने का कार्य कर रहा है।

कार्यक्रम का संचालन मंथन-सम्पूर्ण विकास केंद्र की शिक्षिका प्रतिभा रानी ने किया। DJJS की प्रचारक शिष्या दीपा भारती ने मातृभाषा हिंदी की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहाकि अपनी राष्ट्र भाषा से जुड़कर व्यक्ति अपनी संस्कृति से जुड़ता है और संस्कृति से जुड़कर अपने संस्कारों से जुड़ता है। भारत के ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा यह दायित्व बनता है कि हम अपनी मातृभाषा के प्रचार-प्रसार में अपना-अपना योगदान निभाएं। इसके बाद सभी केन्द्रों के छात्रों के लिए निबंध लेखन प्रतियोगिता, कविता पाठ, दोहों का स्वर गायन, हिन्दी में प्रश्नोतरी, इत्यादि गतिविधियों का आयोजन किया गया जिनमें बच्चों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया।

मंथन-
सम्पूर्ण विकास केंद्रकी एक शिक्षिका ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री एवं प्रखर कवि अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा लिखित प्रेरणादायक कविता “कदम मिलाकर चलना होगा” की प्रस्तुति की जिसने सभी के दिलों में देशभक्ति की भावना को दृढकर दिया।संचालिका ने पहेलियों के माध्यम से कार्यक्रम को जीवंत कर दिया।

श्री मती पद्मावती पांडे ने भी हिंदी भाषा की महिमा से भरपूर कुछ अनमोल विचार रखते हुए कहाकि हिंदी में गज़ब का लचीलापन और विभिन्न भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करने की क्षमता है। हिंदी को जो स्थान हम नहीं दे सके, वह हिंदी स्वयं प्राप्त कर रही है। आज कंप्यूटर पर हिंदी लिखना आसान हो गया है।

भारत सरकार ने भी प्रारंभिक शिक्षा में हिंदी भाषा की महत्ता को स्वीकार करते हुए इस ओर कदम बढ़ाये हैं।

जिससे निःसंदेह ही अंग्रेजी सीखने का दबाव कम होगा और प्रतिभाएं निश्चित ही सामने आएँगी।

अंत में हम इतना कह सकते हैं कि हिंदी को उसका उचित स्थान और सम्मान देकर ही हम अपने देश की एकता और अखंडता को दृढ़ता प्रदान कर सकते हैं और देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जा सकते हैं। इसी प्रण के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।

 

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