बड़ी आंत के कैंसर में उपचार के कारगर तरीके बने टारगेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी

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Panipat News, 23 Dec 2018 : टारगेटेड थेरेपी यानी लक्षित चिकित्सा और इम्यूनोथेरेपी यानी प्रतिरोधी चिकित्सा बड़ी आंत के कैंसर (कोलोरेक्टल कैंसर) में उपचार के नए तरीके हैं। राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र (आरजीसीआईएंडआरसी), नई दिल्ली में मेडिकल ऑन्कोलॉजी के निदेशक डॉ. विनीत तलवार ने कहा कि टारगेटेड थेरेपी में दवाएं कैंसर वाली जगह को लक्ष्य बनाती हैं और पारंपरिक कीमोथेरेपी की दवाओं के साथ दी जाती हैं ताकि कैंसर की अधिक कोशिकाएं मर जाएं और रोगी के बचने की संभावना बढ़ जाए। वह इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), पानीपत तथा आरजीसीआईएंडआरसी के संयुक्त तत्वावधान में कैंसर विज्ञान (ऑन्कोलॉजी) पर आयोजित कॉन्टिन्यूइंग मेडिकल एजूकेशन (सीएमई) कार्यक्रम पर जानकारी साझा करने वाले सत्र में बोल रहे थे।

प्रतिरक्षा चिकित्सा (इम्यूनोथेरेपी) की दवाएं शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को ताकत देती हैं और प्रतिरक्षा तंत्र स्वयं ही कैंसर की कोशिकाओं से लड़ता है, जिससे दुष्प्रभाव लगभग खत्म हो जाते हैं। डॉ. तलवार ने बताया कि केवल कीमोथेरेपी से रोगियों के बचने की दर कम थी, लेकिन टारगेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी के साथ बचने की दर बढ़ गई है।

कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार में विकिरण यानी रेडिएशन की भूमिका पर आरजीसीआईएंडआरसी के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी निदेशक डॉ. मुनीश गैरोला ने कहा, निस्संदेह बड़ी आंत के कैंसर में उपचार के लिए सर्जरी ही चुनी जाती है, लेकिन रेडिएशन ट्यूमर के आकार को कम करने में मदद करता है, जिससे सर्जन को ऑपरेशन करने में आसानी होती है और बीमारी फैलने की आशंका कम हो जाती है। इससे बचने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। कीमोथेरेपी रेडियो सेंसिटाइजर की तरह काम कर रेडिएशन के प्रभाव को बढ़ा देती है, जिससे रेडिएशन ऊतकों में गहराई तक पहुंच जाता है। रेडिएशन में काफी प्रगति हो चुकी है। पहले रेडिएशन के बहुत दुष्प्रभाव होते थे, लेकिन अब रेडिएशन की ज्यादा केंद्रित तकनीकें ‘कन्फॉर्मल रेडिएशन’ हैं, जिनके जरिये हम रेडिएशन को ट्यूमर की आकृति के मुताबिक सीमित कर सकते हैं।

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