निरोग, स्वस्थ व लंबी आयु से युक्त जीवन के लिए योगासन को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बनाएँ

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New Delhi News, 18 June 2019 : बात मुक्ति की हो, आध्यात्मिक उन्नति की हो, आनंद की चिरंतन अनुभूति की हो, दुःख-विषाद के अहसास से ऊपर उठने की हो या फिर मनुष्य के सम्पूर्ण स्वास्थ्य की ही क्यों न हो; ‘योग’ एक ऐसा छत्र है जिसमें ये सब लाभ समाए हुए हैं। यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) के अनुसार योग शरीर, मन व आत्मा के समन्वय पर आधारित एक ऐसी पद्धति है, जो शारीरिक, मानसिक व आत्मिक उत्थान की कारक तो है ही, साथ ही सामाजिक विकास का भी अभिन्न अंग है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) द्वारा घोषित किया गया कि हर वर्ष ‘21 जून’ अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाएगा। सन् 2016 में यूनेस्को ने योग को मानवता की अप्रत्यक्ष सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage of Humanity) की प्रतिनिधित्व सूची में भी दर्ज़ किया।

योग है क्या? युज्यतेऽसौ योगः अर्थात् जिसके द्वारा मिलन होता है, वह योग है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से भी देखें, तो योग शब्द संस्कृत की युज् धातु से बना है जिसका अर्थ होता है- ‘जुड़ना’।

आज के परिवेश में दृष्टि घुमा कर देखे तो ऑफिस व कंपनियों में लोग दिन-रात कुर्सियों पर बैठकर केवल दिमाग की मशीनरी चलाते हैं| शारीरिक श्रम तो न के बराबर होता है| फिर ये सब छोटी-बड़ी बीमारियों से अछूते कैसे रह सकते हैं? कुल मिलाकर देखें, तो आज हर वर्ग, हर स्तर और हर आयु के लोग किसी न किसी बीमारी की चपेट में निश्चित रूप से आ चुके हैं| इसका एक मुख्य कारण शारीरिक कसरत का कम होना या न के बराबर होना ही है| एक महान दार्शनिक प्लेटो ने भी कहा था- “ Lack of activity destroys the good condition of every human being while movement and methodical physical excercise save it and preserve it.” अर्थात् शारीरिक  क्रियाओं का कम होना हमारे शरीर की अच्छी अवस्था को बिगाड़ सकता है| वहीं पर सधा हुआ व्यायाम उसे सुदृढ़ बनाने में सक्षम है|

हमारे ऋषि-महर्षियों ने आज से हजारों वर्ष पूर्व ही एक इसी पद्धति की खोज कर दी थी, जो हमारा सम्पूर्ण विकास कर सकती है| वह है, “योगासन की पद्धति”| इसका कोई साइड इफैक्ट नहीं| सिर्फ लाभ ही लाभ हैं| हमारी भारतीय संस्कृति में ‘योग’ का अर्थ होता है – ‘जुड़ना’ अर्थात् परमात्मा से जुड़ना| योगासन की पद्धति भी अपने नाम को सार्थक करती है| जीव को परमात्मा की ओर अग्रसर करने में सहायक सिद्ध होती है| हमारी योगिक संस्कृति में इतने आसनों का उल्लेख है, जितने जगत में जीव अर्थात् 84 लाख आसन! इनमें से 84 आसन श्रेष्ठ आसनों की गिनती में आते हैं और इन 84 में से 32 आसन मानव शरीर के लिए सर्वोत्तम रूप से लाभदायक माने गए हैं|

योगासन करने का श्रेष्ठ समय प्रातःकाल है| योगासनों का अभ्यास सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय के समय करना सर्वोत्तम कहा गया हैं| सवेरे-सवेरे मीठी नींद को त्यागकर, नित्य शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर, प्रकृति की गोद में, पार्क की हरी-हरी घास के ऊपर योग-आसन किए जाने चाहिएँ| चूंकि इन आसनों को करने के लिए खुला वातावरण और मात्र एक बिछौना चाहिए, इसलिए इन्हें करना हर तबके, हर वर्ग के व्यक्ति के लिए संभव है| गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी इनका लाभ उठा सकते हैं|

योगासनों के अनेक लाभ हैं| इनमें से कुछेक इस प्रकार हैं-
1. जहाँ व्यायाम से शरीर कड़ा व सख्त हो जाता है जो रोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है, वहीं योगासन शरीर को लचीला बना देते हैं| यह लचीलापन शरीर को निरोग बनाए रखने में सहायक सिद्ध होता है|
2. योगाभ्यास के बाद शरीर में थकावट नहीं, बल्कि एक अलग तरह का हल्कापन महसूस होता है| इस वजह से व्यक्ति कम समय में, कम शक्ति का प्रयोग करके, अधिक कार्य कर सकता है|
3. योगासनों से हमारे शरीर में हॅार्मोन्स की मात्रा नियंत्रित हो जाती है|
4. श्वास लेने की क्रिया लंबी व गहरी हो जाती है|
5. नस-नाड़ियाँ स्वच्छ एंव निर्मल हो जाती हैं|
6. जहाँ व्यायाम तो केवल हमारी उपरी माँस-पेशियों पर प्रभाव डालता है, वहीं योगासन आन्तरिक अंगों जेसे हृदय, गुर्दे आदि को भी सुदृढ़ कर देते हैं| शरीर एक अलग ही आभा से दमक उठता है और मोहक सुगंध से सुगंधित हो जाता है| व्यक्ति सुन्दर एंव सुदृढ़ शारीर के साथ अपने जीवन का निर्वाह कर पाता है|
7. योगासन मन को भी सशक्त करने की भूमिका निभाते हैं| इनके निरंतर अभ्यास से मन धीरे- धीरे अपना चपल स्वभाव छोड़ देता है| स्थिर एंव शांत रहने लगता है| साथ ही, नकारात्मक दृष्टिकोण को त्यागकर सकारात्मक और आशावादी विचारों को धारण करता है|
8. आसनों को करने से मदिरापान, माँसाहार, धूम्रपान, जैसी बुरी लतें भी आहिस्ता-आहिस्ता छूटती जाती हैं|
9. आसनों के अभ्यास से दिमाग बलशाली बनता है, जिससे स्मरण शक्ति में अत्यधिक वृद्धि होती है|
10. सहजता, धैर्यशीलता, आत्मबल, एकाग्रचित्तता आदि अनेक गुणों का विकास होता है| ईश्वर में आस्था, विश्वास एंव जीवन जीने की कला सहज ही आने लगती है|

अब आप समझ ही गए होंगे कि तन-मन के विकास के लिए योगासन कितने आवश्यक हैं! अतः बढ़ें अपनी संस्कृति की ओर! ऋषि-महर्षियों द्वारा सिखाई गई योग – पद्धति की ओर! योगासन को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बनाएँ| तभी हम निरोग, स्वस्थ व लंबी आयु से युक्त जीवन जी पाएँगे|

अंग्रेजी की एक कहावत है- “Why to settle in good when we can have the best.” अर्थात् ‘अच्छे’ में संतुष्टि क्यों करें, जब हम ‘श्रेष्ठ’ को पा सकते हैं| कुछ ‘न’ से व्यायाम अच्छे हैं, पर योगासन श्रेष्ठ हैं! अब निर्णय आपके हाथ में है कि आप किसका चयन करते हैं| दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की मासिक पत्रिका “अखंड ज्ञान” से उद्ग्रित लेख।

– श्री आशुतोष महाराज
(दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ)

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