गुड़गांव में डेवलपर्स ग्रीन बिल्डिंग प्रोजेक्ट्स पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं

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Gurugram News, 13 Sep 2018 : गुड़गांव में डेवलपर्स आसपास के इलाकों में ग्रीन बिल्डिंग बनाने के लिए स्थायित्व की ओर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इस प्रयास का लक्ष्य प्रोजेक्ट्स डिजाइन करते हुए सर्वश्रेष्ठ प्रक्रियाओं के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन में कटौती कर और पैसे बचाकर पर्यावरण के प्रति योगदान देना है। डेवलपर्स ने स्वीकार किया है कि इमारतों और निर्माण का भविष्य स्थायित्व और ग्रीन बिल्डिंग के नियमों का पालन करने में निहित है क्योंकि इससे पर्यावरणीय और आर्थिक प्रदर्शन का अधिकतम लाभ उठाया जाएगा। ज्यादातर डेवलपर्स पहले से बने ढांचों को ही नए सिरे से बनाने और स्थायी प्रक्रियाएं अपनाने की योजना बना रहे हैं।

इस बारे में श्री नीलेश नार्वेकर, सीईओ-जेएसडब्ल्यू सीमेंट ने कहा, उपभोक्ताओं के बीच पर्यावरणीय संरक्षण की जरूरत के बारे में बढ़ती जागरूकता ने उन्हें उनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीजों के प्रति सावधान बनाया है। उद्योग अपनी तरफ से विनिर्माण प्रक्रियाओं को स्थायी, पृथ्वी के अनुकूल और हरित बनाने की दिशा में काम कर रही है। ठीक इसी तरह रियल एस्टेट डेवलपर्स और इंजीनियर भारत में निर्माण प्रक्रिया में स्मार्ट कॉन्सेप्ट और ग्रीन मैटेरियल्स का इस्तेमाल कर ग्रीन स्पेस बनाने की ओर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। ग्रीन बिल्डिंग प्रोजेक्ट्स के प्रति इस बदलाव के परिणामस्वरूप हमें ग्रीन सीमेंट या पीएससी (पोर्टलैंड स्लैग सीमेंट) के उपभोग में जबरदस्त वृद्धि देखने को मिली। पीएससी बनाने में कचरे के इस्तेमाल की प्रक्रिया से न सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित करते हैं बल्कि यह बड़े पैमाने पर सह-उत्पादों के उत्पादन को कम करते हैं। पीएससी का इस्तेमाल भविष्य में बढ़ने की उम्मीद है और भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र का एकीकृत हिस्सा बनेगा। पीएससी उत्पादन के दौरान कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन की कमी, वैकल्पिक ईंधन का इस्तेमाल, जल संसाधनों का संरक्षण गौर करने लायक बिंदु है जो उत्पाद को हरित बनाते हैं

भारत में पहले से ही नेशनल बिल्डिंग कोड, एनर्जी कंजरवेशन बिल्डिंग कोड (ईसीबीसी) है और राज्य भी ग्रीन बिल्डिंग को प्रोत्साहित कर रहे हैं। सितंबर, 2017 तक 4.7 अरब वर्ग फुट क्षेत्र में फैले 4,300 से अधिक प्रोजेक्ट्स को ग्रीन टेक्नोलॉजी के लिए पंजीकृत कराया गया है। दुनिया में भारत का ग्रीन बिल्डिंग बाजार अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है और अनुमान है कि 2022 तक यह 10 अरब वर्ग फुट तक पहुंच जाएगा जिसका मूल्न्य 35-50 अरब डॉलर हो जाएगा।

बिजली की बचत के अलावा इसमें इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों का भी हरित आर्थिक बदलाव में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। देश में स्थायी इमारती सामग्रियों की भरपूर मांग है। ग्रीन बिल्डिंग्स का अनुमान बढ़कर 10 अरब वर्ग फुट तक पहुंचने का अनुमान है और ग्रीन बिल्डिंग सामग्रियों और स्थायी उत्पादों के बाजार भी इसी गति से बढ़ने की उम्मीद है।
सीमेंट के उत्पादन में सीओ2 के स्तरों को कम करने के लिए जेएसडब्ल्यू जैसी कंपनियों ने कचरे का उपयोग की प्रक्रियाओं को अपनाया है यानी सीमेंट विनिर्माण प्रक्रिया में अन्य उद्योगों के सह-उत्पादों या कचरे का इस्तेमाल कर कंपनी कार्बनयुक्त कच्चे माल का इस्तेमाल कम कर रही है। पोर्टलैंड स्लैग सीमेंट (पीएससी) ऐसा ही एक मिश्रित सीमेंट है। पीएससी की मुख्य सामग्री-स्लैग इस्पात संयंत्र से मिलने वाला एक सह-उत्पाद है। स्लैग एक नॉन-मेटलिक उत्पाद है जिसमें सिलिकेट्स और लाइम का एल्युमिनो-सिलिकेट्स के साथ 90 फीसदी से अधिक ग्लास शामिल है। इसे 45-50 फीसदी स्लैग, 45-50 फीसदी क्लिंकर और 3-5 फीसदी जिप्सम के मिश्रण से बनाया जाता है। अपने विभिन्न प्रकार के फायदों, टिकाऊपन और लो हीट ऑफ हाइड्रेशन के कारण यह बड़े पैमाने पर सबसे उपयुक्त है।

स्लैग शुद्ध ऑर्डिनरी पोर्टलैंड सीमेंट (ओपीसी) या फ्लाई एष-बेस्ड सीमेंट की तुलना में स्थायी निर्माण के लिए अहम भूमिका निभाता है। न सिर्फ पीएससी हरित उत्पाद है बल्कि इसमें मजबूती की खूबियां भी हैं जो हाइड्रेशन की कम गर्मी के कारण थर्मल कै्रक्स को कम किया जाता है, श्रृंकेज कै्रक्स को कम करना, क्लोराइड, सल्फेट और कार्बन डाई ऑक्साइड जैसे रसायनों के प्रति बेहतर प्रतिरोध है और इसमें लंबी अवधि की मजबूती एवं बेहतर टिकाऊपन है।

जेएसडब्ल्यू ने 2009 में सीमेंट बाजार में स्लैग जैसे औद्योगिक सह-उत्पादों का इस्तेमाल कर पर्यावरण अनुकूल सीमेंट का उत्पादन कर स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण के साथ कदम रखा था। कर्नाटक में विजयनगर, आंध्र प्रदेश में नंदयाल, महाराष्ट्र में डॉल्वी और पश्चिम बंगाल में सलबोनी में कंपनी के संयंत्र ग्रीन सीमेंट का उत्पादन करनके लिए सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ता के स्लैग का इस्तेमाल कर ग्रीन सीमेंट बनाते हैं। इसने समूह का कार्बन उत्सर्जन कम करने में भी मदद की। इससे न सिर्फ संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित हुआ बल्कि औद्योगिक सह-उत्पादों को फेंकने की वजह से पैदा होने वाला पर्यावरणीय जोखिम से भी बचाव संभव हुआ। जेएसडब्ल्यू सीमेंट के पास प्रति वर्श 11.6 एमटीपीए टन उत्पादन करने की क्षमता है। लोढ़ा वर्ल्ड वन, मुंबई; एलएनजी पेट्रोनेट, दाहेज; नवल डॉकयार्ड, जेटी प्रोजेक्ट, कोलाबा मुंबई; बेंगलुरू मेट्रो, बेंगलुरू; पोर्ट ट्रस्ट (एलएंडटी और ईसीसी जियो स्ट्रक्चर्स), एन्नोर; आईओसीएल प्रोजेक्ट्स, एन्नोर; मुंबई मेट्रो और मुंबई पोर्ट ट्रस्ट ने जेएसडब्ल्यू सीमेंट द्वारा बनाया गया पीएससी का इस्तेमाल किया गया।

सीमेंट इमारत का महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि ढांचे का आधार और टिकाऊपन इस पर निर्भर करता है। सीमेंट उत्पादन अत्यधिक ऊर्जा केंद्रित है। भारत के सीओ2 उत्सर्जन में 7 फीसदी हिस्सेदारी सीमेंट उत्पादन का है। सीमेंट उत्पादन प्रक्रिया में अत्यधिक उत्सर्जन होता है, प्राथमिक तौर पर इसलिए क्योंकि सीमेंट उत्पादन के लिए अत्यधिक गर्मी की जरूरत होती है। उच्च उत्सर्जन के कारण सीमेंट उत्पादन देष में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिहाज से एक प्रमुख क्षेत्र बन सकता है।

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