रामेश्वरम् घाम व तिरुपति बालाजी मंदिर से जल व मिट्टी का विधी विधान पूर्वक संग्रहण

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1999
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New Delhi News : 18 से 25 मार्च तक लाल किला प्रांगण में होने वाले राष्ट्र रक्षा महायज्ञ में हवन कुंडों में चारों घामों व भारत की सीमाओं से जल व मिट्टी लाने हेतु 14 फरवरी को रवाना किया था। यह सदस्य लगभग 8000 किलोमीटर की यात्रा कर 5 तीर्थस्थलों का भ्रमण कर चुके है। राष्ट्र रक्षा महायज्ञ हेतु जल मिट्टी रथयात्रा के सदस्य जल व मिट्टी संग्रहण हेतु रामेश्वर धाम, तिरुपति बालाजी व मदुरई पहुचे।
जल मिट्टी रथ के सदस्यों ने रामेश्वरम  मंदिर के पंडित जी से जानकारी प्राप्त करने के उपरांत पूरे विधि विधान व पूजा पाठ के साथ रामेश्वरम धाम के 22 कुंडो से जल एकत्रित किया। तदोपरांत रामेश्वरम स्थित समुद्र से भी विधि पूर्वक जल का संग्रहण किया व इसके साथ ही विश्व विख्यात मंदिर तिरुपति बालाजी व मीनाक्षी मंदिर से भी जल का विधिपूर्वक संग्रहण किया। तिरुपति वेन्कटेशवर मन्दिर तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर है। तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है।  प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं।
राष्ट्र रक्षा महायज्ञ के सदस्यों को स्थानीय लोगों से अपार स्नेह प्राप्त हुआ। सैकड़ो लोगो ने उत्सुकता पूर्वक राष्ट्र रक्षा महायज्ञ के बारे में जानकारी प्राप्त की। साथ ही सभी ने महायज्ञ आयोजको की प्रशंसा की कि वह देश की रक्षा व सौहार्द हेतु इस महायज्ञ का आयोजन करने जा रहे है। चारों दिशाओं में स्थित चार धाम हिंदुओं की आस्था के केंद्र ही नहीं बल्कि पौराणिक इतिहास का आख्यान भी हैं। जिस प्रकार धातुओं में सोना, रत्नों में हीरा, प्राणियों में इंसान अद्भुत होते हैं उसी तरह समस्त तीर्थ स्थलों में इन चार धामों की अपनी महता है। इन्हीं चार धामों में से एक है दक्षिण भारत का काशी माना जाने वाला रामेश्वरम। यह सिर्फ चार धामों में एक प्रमुख धाम ही नहीं है बल्कि यहां स्थापित शिवलिंग को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।
सीमाओं की रक्षा के लिए हमारे वीर सैनिक सबकुछ दांव पर लगाते है, जिन सीमाओ के कण कण हमे उनकी शौर्य गाथा सुनाते है, जिन पावन धामो के आगे सबके सर नतमस्तक हो जाते है, उन्हीं पावन स्थानों की आस्था को दर्शाने हेतु जल व मिट्टी का संग्रहण किया जा रहा है। यह रथ देश की सीमाओं एवम चारों धाम से पवित्र जल व मिट्टी को आस्था पूर्वक ले कर आएंगे तथा 18 से 25 मार्च तक आयोजित होने वाले आठ दिवसीय महायज्ञ में बनने वाली यज्ञशाला में इनका प्रयोग किया जाएगा।
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