ब्रह्मज्ञान ही मानव में क्रांति और विश्व में शांति का आधार : साध्वी आस्था भारती

0
1488
Spread the love
Spread the love

New Delhi News, 24 Nov 2019 : रोहिणी सेक्टर 21, दिल्ली में दिनांक 18 से 24नवम्बर, 2019तक ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ का अद्भुत, भव्य व विशाल आयोजन किया जा रहा है।कथा के पंचम दिवस भगवान की अनन्त लीलाओं में छिपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को कथा प्रसंगों के माध्यम से उजागर करते हुए परम पूजनीय सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या भागवत भास्कर महामनस्विनी विदुषी सुश्री आस्था भारती जी ने चीरहरण प्रसंग, मथुरा की लीलाएँ एवं कंस वध प्रसंग प्रस्तुत किए।साध्वी जी ने बताया किहमारे शास्त्र ग्रंथों में यह वर्णित है कि ईश्वर देखने का विषय हैं, ईश्वर को देखा जा सकता है और एक पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ गुरु ही ईश्वर दर्शन करवाने में समर्थ है। ब्रह्मज्ञान एक ऐसी युक्ति हैं जिसके द्वारा ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता हैं, साध्वी जी ने बताया कि हमारे इतिहास में ऐसे अनेकों भक्त हुए जिन्होंने पूर्ण गुरु की शरणागति हो इस ज्ञान को प्राप्त कर, अपने जीवन का कल्याण किया! इसी युक्ति को संत रविदास जी से पाकर मेवाड़ की महारानी ने अंतर्घट में भगवान श्री कृष्ण के शाश्वत रूप का दर्शन किया तथा स्वयं जगद्गुरु श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन ने भी इसी आत्म-ज्ञान द्वारा महाप्रभु के विराट रूप का दर्शन किया! उन्होंने बताया कि ईश्वर प्राप्ति ही जीव का परम लक्ष्य है और केवल आत्म ज्ञान ही साधन हैं। कथा व्यास भागवत भास्कर साध्वी सुश्री आस्था भारती जी ने चीरहरण के खण्ड-विखण्डित हुए रूप के प्रति लोगों को जागृत करने का प्रयास किया। उन्होंने चीरहरण के पीछे छिपे हुए आध्यात्मिक रहस्यों को उजागर करने के साथ-साथ लोगों के संशयात्मक दृष्टिकोण को भी दूर किया कि वास्तव में इस लीला का क्या अर्थ है? चीर अज्ञानता की परतों का प्रतीक है जिनसे एक जीवात्मा आवृत है अर्थात् आत्मा और परमात्मा के मध्य बाधक है। श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम गोपियों को ब्रह्मज्ञान दिया और तत्पश्चात् महारास द्वारा भीतर में परम आनन्द का रसास्वादन करवाया।

अंत में साध्वी जी ने ‘कंस वध’ प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि जब-जब भी धरा पर आसुरी प्रवृतियाँ हाहाकार मचाती हैं, तब-तब प्रभु अवतार धारण करते हैं। स्वयं प्रभु श्री कृष्ण उद्घोष करते हैं-यदा यदा हि ध्र्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमध्र्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।द्वापर काल में जब कंस के अत्याचारों से धरती त्राहिमाम् कर उठी तो धर्म की स्थापना और भक्तों के कल्याण के लिए परमात्मा का श्री कृष्ण के रूप में अवतरण हुआ। इसी प्रकार वह ईश्वर हर युग, हर काल में साकार रूप धारण कर व्यक्ति के भीतर ईश्वर को प्रकट कर देता है। भीतर की आसुरी प्रवृत्तियों का नाश कर परम सुख और आनन्द का बोध करा देता है और तब अधर्म पर धर्म की विजय का शंखनाद गुंजायमान हो उठता है।

इसके अतिरिक्त विदुषी जी ने अपने विचारों में संस्थान के बारे में बताते हुए कहा कि संस्थान आज सामाजिक चेतना व जन जाग्रति हेतु आध्यात्मिकता का प्रचार व प्रसार कर रही है।(अधिक जानकारी के लिए आप संस्थान की वेबसाइट (Website) – www.djjs.org पर Log On (संपर्क) कर सकते हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here